वो तस्वीर कागज़ की क्या दास्ताँ सुनाती है।
वो जो दास्ताँ-ए-रंग है क्या वही सुनाती है।।
वो तिरगी सी जो बसी है उस तस्वीर में।
वो कौन सा दास्ताँ-ए-रंग सुनाती है।।
परतव-ए-ख़ुर पड़ी जब तस्वीर-ए-'इबरत पर।
वो तजल्ली न जाने क्या दास्ताँ सुनाती है।।
वो जो दिखता है कभी-कभी वो अस्ल मे होता नहीं।
वो होता है कुछ और तस्वीरें कुछ और सुनाती है।।
तरवीरें और उनमें भरें रंग भी अक्सर बोलते है ।
सब्र से देखो और ध्यान से सुनो वो जो सुनाती है।।
दास्ताँ = कथा , कहानी
दास्ताँ-ए-रंग = कहानी जो रंग कहते है
परतव-ए-ख़ुर = सूर्य की किरण
तस्वीर-ए-'इबरत = छवि जिससे कोई पाठ सीखा जाए ,
तजल्ली = रौशनी
अक्सर = अधिकतर , अमूमन
सब्र = patience
अजय सरदेसाई ( मेघ )
शनिवार , २/३/२०२४ , ६:३० PM
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