प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Saturday, 23 March 2024

गीत गाता हूँ


जीवन के इस कठीण दौर में ,मैं तेरे गीत गाता हूँ।

मैं थकता नहीं, मैं हारता नहीं, मैं प्रेम गाता हूँ।।

जन्म से लेकर अब तक, जो तूने मुझे सिखाया।

तेरी इस शिक्षा के आज, मैं परचम लहराता हूँ।।

तूने दिखाए सुन्दर सपने और मैंने उन्हें रंग दिया।

उन सपनों के झूले पर बैठ मैं नए तराने गाता हूँ।।

कमलों की तितलियाँ बनते हुए मैं रोज़ रोज़ देखता हूँ।

कमलों के लिए बाग़ में मैं चहचहाते गीत गाता हूँ 

विशुद्ध निसर्ग तूने बनाया,जिसमे जिव मंत्रमुग्ध समाया।

गरजते मेघ देख सावन के,मैं उन्ही के गीत गाता हूँ।।

व्योमरापवायूरतेज और पृथ्वी तत्त्व से ये मेरा शरीर बना।

ये जो पंचभूत बेस स्पंदनों में मेरे,मैं उनका गीत गाता हूँ।।

 

शनिवार , २३/०३/२०२४   , ०७:०० PM

अजय सरदेसाई (मेघ)

 कमल = caterpillar

व्योमरापवायूरतेज = आकाश , पानी (जल ), वायू , आग

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