जीवन के इस कठीण दौर में ,मैं तेरे
गीत गाता हूँ।
मैं थकता
नहीं, मैं हारता नहीं, मैं प्रेम गाता हूँ।।
जन्म से
लेकर अब तक, जो तूने मुझे सिखाया।
तेरी इस
शिक्षा के आज, मैं परचम लहराता हूँ।।
तूने दिखाए
सुन्दर सपने और मैंने उन्हें रंग दिया।
उन सपनों के
झूले पर बैठ मैं नए तराने गाता हूँ।।
कमलों की तितलियाँ
बनते हुए मैं रोज़ रोज़ देखता हूँ।
कमलों के लिए बाग़ में मैं चहचहाते गीत गाता हूँ ।।
विशुद्ध निसर्ग
तूने बनाया,जिसमे जिव मंत्रमुग्ध समाया।
गरजते मेघ
देख सावन के,मैं उन्ही के गीत गाता हूँ।।
व्योमरापवायूरतेज
और पृथ्वी तत्त्व से ये मेरा शरीर बना।
ये जो पंचभूत
बेस स्पंदनों में मेरे,मैं उनका गीत गाता हूँ।।
शनिवार , २३/०३/२०२४ , ०७:०० PM
अजय सरदेसाई
(मेघ)
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