प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Sunday 11 February 2024

कोई शय जमीं पे मुकम्मल नहीं हैं।


 

कोई शय जमीं पे मुकम्मल नहीं हैं।

सिवाय इसके जिन्दगी में कोई कमी नहीं है।।1।।


एक बार तो देखलो तुम प्यार से मुझे।

नफ़रत की इस दुनियां में मुझे कमी नहीं है।।२।।


मरने की मेरे पास कई वजहें है मगर

जिने कि अब तलक कोई वज़ह नही है।।३।।


फरिश्तों ने भी मुझे ठुकराया है अक्सर

अब किसी से भी कोई मुझे आस नहीं है।।४।।


तुम बताओ कि इस जहां से मैं जाऊ कहाँ ।

किसी जहां में मेरे लिए कोई जगह नहीं है।।५।।

 

रविवार, ११//२०२४ , ११:३६ PM

अजय सरदेसाई (मेघ)

 

शय = वस्तु , पदार्थ

मुकम्मल = पूर्ण , सम्पूर्ण

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