प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Tuesday 31 August 2021

आराइश-ए-कुद्रत

 

आराइश--कुद्रत

आफताब दरख़्तो॑ तले बुनकारी कर रहा  है

हसीन  नजारा है , के दरख़्तो॑ के साये लरज़ते है

मिरे रूह--ख़्वाबीदा से हवा कह रहि है  

इन मखमली सयों को देख, क्या आराइश--कुद्रत है !

मेघ 
३१/८/२०२१ , ७:०० PM


आफताब - सूर्य , sun
बुनकारी - weaving 

दरख़्त - पेढ , tree

हसीन  नजारा - सुंदर द्रिश्य , beautiful  sight

लरज़ना - थरथराना , लहरांना , quaver

मिरे - mine

रूह--ख़्वाबीदा - dreamy soul

मखमली - velvety

साये - shadows

आराइश--कुद्रत - decoration  of  nature






Wednesday 25 August 2021

इश्क़-ए-हक़ीक़ी


 

इश्क़-ए-हक़ीक़ी 

इश्क़--हक़ीक़ी  है मेरी वज्ह--नशात

तिरे  कुर्बत में हूँ तो हूँ मौज--नशात

इक जमाना  है गुजरा जमानेसे तर्क--मरासिम हुए 

इक जमाना है गुजरा जमाने का रूदाद लिए



-मेघ-

२५/८/२०१ , ६:०० PM


इश्क़--हक़ीक़ी - ईश्वर प्रेम , भक्ती ( devotion and love of God )

वज्ह--नशात - परमानंदाचे कारण ( reason for bliss & ecstasy )

मौज--नशात - परमानंदाच्या लाटेवर आरूढ ( riding on a wave of bliss & ecstasy )

कुर्बत – सानिद्यात , फार जवळ ( nearness , closeness )

जमाना गुजरा - खूप दिवस , महिने वर्षे ( a long time ago)

जमाना – जग ( world)

तर्क--मरासिम - सर्व समंध तोडणे , नाती तोडणे ( renouncing relationship )

रूदाद - समाचार घेणे , हाल हवाल विचारणे , चौकशी करणे ( inquire after )



मैकशी ,रिन्द और साकी




   मैकदो॑ को तो मैकशी ने हैं सवारा

रिन्द और साकी के तो बस चर्चे हुआ करते हे

होती मैकशी तो ये मयकदे होते !

होते रिन्द और साकी होते !


 

मेघ

२५//२०२१

०३:१० PM

 

मैकदा - दारु पिण्याचे ठिकाण

मैकशी - नशा करण्याची तलब,सवय

रि॑द- पिणारी व्यक्ती

साकी - दारु पाजणारी सु॑दरी

मू-ए-मिज़ा




उसकी मू--मिज़ा में भी है सौ तूफ़ाँ

उसकी तर्ज़--ख़मोशी पर जाना


बस इक नजर से  हि  शहर--दिल लूट जाए 

   

उसकी सदगी--रुख़ पर जाना


-मेघ-

२५//२०२१ , १२:३० PM


मू--मिज़ा - डोळ्या॑च्या पापण्या

तर्ज़--ख़मोशी - शा॑ततेची ढब , लकब (style)

शहर--दिल - हॄदय ( heart )

सदगी--रुख़ - चेहऱ्यावर ची निरागसता


Thursday 19 August 2021

मुहब्बत पर कुछ पंक्तियां


 

तिरे इख़्लास मे किये तर्क- -रुसूम हमने,

आप  तर्क--मरासिम कि बात करते है I

किस बात की अदावत  है तुम्हे मुझसे ,

अब उस चांद को अलामत समझकर तिरा ,

रात रात भर बेदार हुआ करते है I

 

मेघ

१९--२०२१

:३२ PM

 

Translation :

तुझ्या प्रेमात ( इख़्लास - सच्चे निष्कपट प्रेम ) मी सर्व पर॑परा चालीरीती॑च्या ( तर्क--रूसूम - abandon customs ) बेड्या तोडल्या,

आणि तु आता आपले प्रेम संबंध तोडायला निघाली आहेस ( तर्क--मरासिम - breaking relationship )

तुझ माझ्याशी अस कोणतं शत्रुत्व ( अदावत - शत्रुत्व ) आहे ज्या मुळे तु हे करत आहेस ?

( आता तु  मला  भेटत नाहीस , दिसत नाहीस म्हणुन - अधोरेखित आहे लिहिले ले नाही)

मी आता त्त्या च॑द्रालाच तुझे स्वरुप मानुन ( अलामत - निशान ) मी रात्र रात्र जागून ( बेदार - जागणे ) काढत आहे.

( अर्थातच तिच्या प्रतिक्षेत हे अधोरेखित आहे - लिहिलेले नाही)

कुछ खयाल और पंक्तीयां


फुलो कि वो सौ॑धी महक 

                और रिश्तो॑ की वो नर्म गर्माहट ,

अब कही गुम सी हो गई है I

                प॑खुडियो॑को और लफ्जो॑ को कटारी कि धार सी है I

कटने का डर बना रहता है ,

                लगता है के बेहतर हो कि  इनसे दुरि मुकम्मल रहे I


मेघ

१८//२०२१

:३८ PM

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इक नमी जो आँखो में थी  कभी ,अभ सुक सी गई हैं  ,

न जाने कहाँ गुमसुम किसी कोने में सिमट गई हैं I

        पुकारते थे जो रास्ते किसी दौर  में मुझे कभी, आवारागर्दी में

        न जाने क्यों  अकेले चुपचाप , सुमसान चल रहे हैं I

नमकीन ,खट्टी-मिठी यादों के वह सुनहरे पल कुछ भिखर से गए हैं I

न जाने क्यों रिश्तो॑ के अ॑दाज भी बदल से रहे हैंI

        वक्त तो ठहरता नहीं किसी के लिए , बितता राहता है I

        हर पल जि॑दगी से लम्हे पिघल से रहे हैं I

सवारा॑ था जिन्हें बड़ी शिद्दत से  अपने  दिल में कभी,

न जाने क्यों वह अरमां धिरे धिरे टुट से रहे हैं I


मेघ

१८//२०२१

:०० PM