प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Friday 20 October 2023

पहले हम सब एक थे


पहले हम सब एक थे और अब दो हो गए ।
दो जिगरी दोस्त थे जो अब दुष्मन हो गए।।

पहले थे इंसान मगर अब किसी धर्म के हो गए ।
कुछ हिन्दू बने और कुछ मुसलमान हो गए।।

एक दुसरे पर जान छिड़कते थे जो कभी वल्लाह।
देखिए कैसे एक दुसरे कि जान के दुष्मन हो गए।।

सरजमीं का भी कोई महजब होता है,वो सभी को अपनाती है।
ये क्या नागवारी थी के टुकड़े करके सब अंजान हो गए।।

पहले यहॉं से वहॉं जाना आना रहता था अक्सर ।
अब उस मिट्टी से बहुत से पाव बे-निशान हो गए ।।

हवाओं को और परिंदो को आजतक किसने रोका हैं ।
वो तो हम इन्सान हैं जो हालातों से कम-शान हो गए।।

शुक्रवार, २०/१०/२०२३ , ०३:१२ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)

 कम-शान - with little/ no dignity 

Thursday 19 October 2023

मैं नादान जरुर हुॅं


मैं नादान जरुर हुॅं जनाब लेकिन इतना भी नादान नहीं।
ये मत समझो के आपके इरादे क्या हैं ये मैं जानता नहीं।।

दिल मेरा जरा कमजोर है हसिनाओ के मुआमले में।
मगर ये न समझो  दुश्मनों के लिए मेरे दिल में फौलाद नहीं।।

मैं तो चला जा रहा था अपनी राह पर मस्त होकर।
औरों की राह क्या हैं इससे मुझे कोई सरोकार नहीं।।

कुछ नहीं होता धरती का सिना चिरकर फसल बोनेसे।
जब तक बारिश नहीं होती हैं कोई खेत संवरता नहीं।।

यु तो चेहरे पर नकाब पहनकर सब हंस लेते हैं यहॉं ।
वर्ना कौन हैं यहॉं जो दर्द-ए-पिन्हाँ से परेशान नहीं।।

दर्द-ए-पिन्हाँ - छुपा हुआ दर्द , Hidden Pain.

गुरुवार, दिनांक १९/१०/२०२३, ५:५४ PM
अजय सरदेसाई (मेघ) 

Friday 13 October 2023

उसके आंखों की चमक


 

उसके आंखों की चमक बता रही हैं कि वो भी उर्दू जानती है I

अब चुनु किसे उसके हुस्न को या ग़ज़ल को , बड़ी पशोपेश हैं  II1II

 

शेर तो फिर हम भी कहते हैं, ग़ज़ल हम भी पढ़ते हैं I

मगर ये हुनर उनका है , जो लफ़्ज़ों से दिल चिर देते हैं II2II

 

अब अपने दिल पे पड़े छालो का क्या हिसाब हैं I

कब वो मरहम लगा देते हैं,बस इसी का इंतज़ार हैं  II3II

 

मैं जानता हूं और वो भी,के ये इश्क अब पुराना हो चला हैं I

इसी लिए जनाब हम उसके दिए जख्मों को शादाब रखते हैं II4II

 

जिनेकी सभी उम्मीदें,सच कहता हूं अब मैंने छोड़ दि है I

बस इंतजार इसी का है "मेघ"  के वो कत्ल कब करते हैं II5II

 

शुक्रवार १३/१०/२०२३ , ०३:४८ PM

 

अजय सरदेसाई (मेघ)

Thursday 12 October 2023

यादें - Random Thoughts



रह जाएंगी बस यादें हीं ,इन्हे संभाल के रखो।

रूखसत न करों दिल से,इन्हें रोक के रखो ।

न जाने फिर कब इन यादों की,जरूरत आन पड़े ।

शायद कभी किसी राह पर, मुलाक़ात हो पड़े।

रखो दिल में इन्हें,न इन्हें खो जाने दो ।

न जाने फिर ये यादों की, सौगात हो न हो।

शायद फिर इस जनम में,कोई याद हो न हो ...........

🥲♥️🙏


Thursday 12/10/2023 , 8:35 PM

Ajay Sardesai (मेघ)

Tuesday 10 October 2023

तेरे कमाल का मुरीद हु मै ऐ ख़ुदा


तेरे कमाल का मुरीद हु ऐ ख़ुदा क्या जलवा बना रख्खा है।
ये क्या कर दिया तूने मुझ पे ये कैसा जादू डाल रख्खा है ।।१ ।।

मैं कहीं भी रहूं इस दुनिया में बेशक मगर ।
तुने मुझे अपनी निगाहों में हमेशा रख्खा है ।।२ ।।

जो हैसियत बादशाहों को भी नहीं हासिल ।
तुने मुझे उस मकाम पर ला रख्खा है ।। ३।।

किसी को दौलत से किसी को शोहरत से नवाज़ा है I 
तेरे करम है ख़ुदा के तूने मुझे दोस्तों से नवाज़ रक्खा है ।। ४ ।।

अपनी इनायतों की पनाहों में शामिल रख मुझे।
जैसे अपने बंदों को तुने जन्नत में रख्खा है ।। ५ ।।

अब यही आरज़ू है की तेरे दीदार हो जाए ।
इसी आरज़ू में ऐ ख़ुदा मेरा जुनून रख्खा है ।। ६ I।
 
तेरा वजूद कब का मिट गया होता "मेघ"।
उसकी रहमतोंने तुझे पाल रख्खा है ।। ७ ।।



मंगलवार ,१०/१०/२०२३ , १०:५६ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)

Thursday 5 October 2023

अब न वो दर्द न वो ग़म और तन्हाई हैं


अब न वो दर्द न वो ग़म और तन्हाई हैं।
जो तेरी याद दिल में थी मैंने भुलाई हैं।।

वक्त भी क्या चिज ख़ुदा ने बनाई हैं।
ये वो शय हैं जो हर ज़ख्म की दवाई हैं।।

हम सांस भी लेते थे कभी जिनके करम से।
उन्हीं को जिंदगी बख्श देने की रुत आई हैं।।

सुना हैं की अपने हुस्न-ओ-रंग पर उसे जो इतना गुरुर हैं।
कह दे उसे इत्मीनान रख जरा वक्त दे तेरी भी सुनवाई हैं।।

कभी ये ख़याल छु जाता हैं की वक्त वो दयार हैं "मेघ"।
जिससे गुजर कर हर चिज बदली बदली सी लौटकर आई हैं।।


बुधवार, ५/९/२३ ७:५८ PM 

अजय सरदेसाई (मेघ)