प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Tuesday 10 October 2023

तेरे कमाल का मुरीद हु मै ऐ ख़ुदा


तेरे कमाल का मुरीद हु ऐ ख़ुदा क्या जलवा बना रख्खा है।
ये क्या कर दिया तूने मुझ पे ये कैसा जादू डाल रख्खा है ।।१ ।।

मैं कहीं भी रहूं इस दुनिया में बेशक मगर ।
तुने मुझे अपनी निगाहों में हमेशा रख्खा है ।।२ ।।

जो हैसियत बादशाहों को भी नहीं हासिल ।
तुने मुझे उस मकाम पर ला रख्खा है ।। ३।।

किसी को दौलत से किसी को शोहरत से नवाज़ा है I 
तेरे करम है ख़ुदा के तूने मुझे दोस्तों से नवाज़ रक्खा है ।। ४ ।।

अपनी इनायतों की पनाहों में शामिल रख मुझे।
जैसे अपने बंदों को तुने जन्नत में रख्खा है ।। ५ ।।

अब यही आरज़ू है की तेरे दीदार हो जाए ।
इसी आरज़ू में ऐ ख़ुदा मेरा जुनून रख्खा है ।। ६ I।
 
तेरा वजूद कब का मिट गया होता "मेघ"।
उसकी रहमतोंने तुझे पाल रख्खा है ।। ७ ।।



मंगलवार ,१०/१०/२०२३ , १०:५६ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)

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