प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Wednesday 29 November 2023

बहुत तन्हाई है


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 बहुत तन्हाई है
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पुरानी यादों लौट आओ बहुत तन्हाई है ।
अकेला छोड़कर न जाओ, बहुत तन्हाई है ।।

दूर रहकर तुम मुझे यु न सताओ ।
मेरी बाहों मे आओ, बहुत तन्हाई है ।।

चाँद अकेला है आज आसमाँ में ।
कहाँ है चाँदनी, बहुत तन्हाई है ।।

ना किसी पंछी का कोई घरौंदा है ।
पेड़ अकेला खड़ा है, बहुत तन्हाई है ।।

इन वादियों मे कौन गीत गुनगुना रहा है  ।
मौसम बड़ा सुहाना है, फिर भी, बहुत तन्हाई है ।।

ऐ तमन्नाओं यु ना उठों दिल से चुपके से ।
कोई नहीं है आसपास, बहुत तन्हाई है ।।

वो देखो दूर वहाँ कुछ चराग़ जल रहे हैं ।
यहाँ मगर दिल में अंधेरा है, बहुत तन्हाई है ।।

जाने क्या अपने साथ ये रात लाई है ।
शब-ए-वस्ल है, फिर भी, बहुत तन्हाई है ।।

जाने क्यों कुछ कमी फिर भी महसूस हो रही है ।
तु मेरे साथ है शाम से, फिर भी, बहुत तन्हाई है ।।



बुधवार २९/११/२३ , १:१५ PM

अजय सरदेसाई (मेघ)


Sunday 26 November 2023

माहताब-ए-उल्फ़त


करते है आदाब और लेते है अक्सर सलाम भी

ढुंढते है चैन के दो पल और कुछ आराम भी।।

 

आवाज़ें अक्सर पुकारती है मुझे पहाड़ों से। 

पुकारती है कुछ सुबह और कुछ शाम भी।।  

 

तेरे आने से बढ़ी है बहुत आज ज़ीनत--महफ़िल

कभी हम आपको देखते है और महफ़िल--आम भी।।

 

इश्क़ अगर करना है मुज़से तो कीजिए बेबाक होकर हरदम

ज़माने का लिहाज़ आप रखो और है निज़ाम मुझे भी ।। 

 

रंगत तेरे चेहरे की जैसे शाम की लाली हो

कभी उस शाम को देख़ते है और इस शाम को भी।।  

 

शब्--वस्ल है तन्हाई है और माहताब--उल्फ़त भी है

हम माहताब--बाम देख़ते है और माहताब--उल्फ़त भी।। 

 

 



आदाब = नमस्कार

महफ़िल--आम = gathering of the common people 

बेबाक = निडर

निज़ाम = तौर,तरीका,दस्तूर , सिस्टम  

शब्--वस्ल = evening /night of lovers meeting or union 

तन्हाई = अकेलापन 

माहताब--उल्फ़त = moon of love 

माहताब--बाम = moon of the sky 


 

रविवार ,२६/११/२३ , ०६:१० PM 
अजय सरदेसाई ( मेघ


Saturday 25 November 2023

कौन हुं मैं


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🦚     कौन हुं मैं       🦚

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मैं कौन हूं ये मैं जानता न था ।
अब जान गया के तेरा खयाल हु मैं ।।

तुम वो राज हो जो मुझपर खुला ही नहीं ।
एक गहरा अंधेरा है जिसका आगाज़ हु मैं।।

तेरी तारीफ सुनकर मैं आया हूं ।
किसी ने सुनाया ही नहीं वो शेर हुं मैं ।।

ज़िक्र जिसका हो रहा है उसे होश नहीं।
उसने जो पी रखी है वो शराब हुं मैं ।।

तु जो  इतरा रही है,क्या वजह है ।
तु क्या जानती है, कौन हुं मैं ।।

वो जो दरिया था जो यहीं से गुजरा।
वो मुझी मे मिला, समंदर हुं मैं ।।

वो जो वक्त तेरा परेशानी मे गुजरा ।
गौर कर उस गुजरे वक्त का सुकुन हुं मैं।।

वो जो आसमान में अचानक अंधेरा छा गया।
उस गहरे आसमान की रंग-ओ-रौनक हुं मैं ।।


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  शनिवार २५/११/२३     

  ४:५४ PM

  अजय सरदेसाई (मेघ )

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क्या करें


बिना जन्म के ही अरथी उठी बेटियों की ।
फिर चाहे कोई लाख पछताकर क्या करें ।।

वो सुन्दर कली कमसिन थी जो मुर्झा गयी ।
किसीने पानी से सिंचा नही , क्या करें ।।

बेटी थी हमारी, शादी करवा के की बिदाई ।
बेटी हमारी ,अमानत किसी और की, क्या करें ।।

बड़ी चुलबुली थी ,हसती थी , हसाती थी , अपनी थी ।
अब सिर्फ एक याद है ,अब वो किसी और की है, क्या करें ।।

उसकी आवाज नहीं थी , खुशियों की  रागिनी थी जब वो बोलती थी ।
अब महीनो बाद फोन आता है , मेरे दिल की धड़कन थी,क्या करें ।।

आज भी आंगन में उसकी खिलखिलाहट मुझे सुनाई देती है ।
जानता हु वो किसी और आंगन में चहचहाती है,क्या करें ।।

ये जानता हूं मैं के वो भी खुश है उस नए आंगन में ।
फिर भी दिल मानता नहीं,बाप का दिल है , क्या करें ।।

शनिवार,२५/११/२३, २:१२ PM 
अजय सरदेसाई (मेघ)

Thursday 23 November 2023

मैने फलक पर जब आफताब देखा


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     @ मैने फलक पर जब आफताब देखा @  

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मैने फलक पर जब भी वो आफताब देखा ।
आप याद आए आइने मे जब अक्स देखा ।।

माँ सुनाथी जब भी किसी राजा की कहानी ।
तसव्वुर मे मैने तब हमेशा आप ही को देखा ।।

हम मिल न सके कभी इस जिन्दगी मे तो क्या ।
फिर भी मैंने अक्सर आपको ख़्वाबों मे देखा ।।

ज़िन्दगी पर मेरे आपका कोई असर नही रहा कभी ।
मैने फिर भी पापा हर अंदाज आपका अपने मे देखा ।।

क्या करिश्मा-ए-कुदरत है ये या फिर कोई  जादू ।
गजब है बहुत लोगों ने आपको मुझ में भी देखा ।।


गुरुवार,२३/११/२३ , १०:५३ AM

अजय सरदेसाई (मेघ)


Monday 20 November 2023

न मौसम-ए-गुल रहा

अब वो ताल्लुक न वो राब्ता रहा ।
जब से तु मुझ पर शर्मिंदा रहा ।।

दरमियाँ एक दराज सा रहा ।
दोनों में एक राज सा रहा ।।

टुटे रिश्तों का बोझ सा रहा।
दोस्तों का कुछ काम न रहा ।।

वक्त बेतकल्लुफ़ गुजरता रहा ।
मैं मैं न रहा और तू तू न रहा ।।

न वो रौशनी रही न वो नजारा रहा ।
न मौसम-ए-गुल रहा न वो दयार रहा ।।   


मंगलवार,२१/११/२३ ,११:३२ PM 

अजय सरदेसाई (मेघ)

 

मैं अकेला ही चला जा रहा था


मैं अकेला ही चला जा रहा था अपनी राह पर ।
न कोई साथ चला न कोई कारवाॅं बना ।।

मैं अकेला ही  फिर भी चलता रहा राह पर ।
मेंरी किस्मत पर हंसे लोग मुझ पर एक अफसाना बना ।।

तेरे इंतज़ार में देर से खड़ा हु यहॉं पर।
चल अब आके मिल तु कोई और बहाने न बना ।।

जिन्दगी तो चलती रही युही बेगानो सी ।
दिल को छु गए बहुत मगर कोई अपना न बना ।।

सलाह तो हर कोई देता रहा जो मीला।
इस दिवाने का मगर कोई रहबर न बना ।।


सोमवार २०/११/२०२३ , ०८:३० PM

अजय सरदेसाई (मेघ )


Monday 13 November 2023

तुझे क्या सुनाऊं मैं दास्ताँ

तुझे क्या सुनाऊं मैं दास्ताँ ।  
ये जिन्दगी तेरा जमाल हैं ।।  
हर सांस में ख़ुशबू तेरी।
हर लम्हा तेरा ख़याल हैं।।

तुझे क्या सुनाऊं मैं दास्ताँ .......

मुझे अब भी है तेरी जुस्तजू ।
क्या तुझे भी मेरी तलाश हैं ।।  
तेरी याद में तेरी कसम।
मेरी ज़िन्दगी बेहाल हैं ।।

तुझे क्या सुनाऊं मैं दास्ताँ.......

मेरी जिस्त तेरी चाहते।
तेरा हुस्न एक सौग़ात हैं।।  
तेरा इश्क मेरी बन्दगी।
तेरे बिन दिल को वबाल हैं ।।

तुझे क्या सुनाऊं मैं दास्ताँ.......

ऐ हसीं अब तो आ भी जा।
अब और दिल को ना सता ।।
तेरे एक झलक की बात है।
मेरे दो जहाँ का सवाल हैं।।

तुझे क्या सुनाऊं मैं दास्ताँ.......

तेरे बिन मेरा वजूद क्या ।  
मैं हु बस तेरे वास्ते ।।
तू कहे तो मैं जी लू जरा । 
वार्ना मुझे ज़िन्दगी से मलाल हैं ।।

तुझे क्या सुनाऊं मैं दास्ताँ.......

 
सोमवार, १३/११/२३ , ६:४८   PM
अजय सरदेसाई (मेघ)

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वबाल = दुःख 

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Saturday 11 November 2023

क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं


जिस राह में जिस मोड़ पर मिले थे हम ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो प्यार वो हम में तुम में जो करार था । 
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो जुनून वो कछ हासिल करने के हौंसले ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो तुझे देखकर मुस्कान मेरी और वो फिर तेरा इतराना ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो बिच दूरियों की चुभन वो मिलने की ख़ल्वते ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो रात को तेरा छत पे आना वो महताब सलोना ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।। 
वो चांदनी की रौशनी वो आँखों के इशारे तेरे ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो किताबों में मिलें सुर्ख फूल वो चिट्ठियों के सिलसिले । 
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो तेरा चलते चलते फिसलना वो मेरा तुझे संभालना ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो लरजती जुल्फों से टपकता पानी वो सावन के महीने ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो धड़कनों की धकधक वो लरजती सांसों की गुंजन ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो तेरा झूठ-मूठ का रूठना वो फिर मेरा तुझे मनाना ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो जो खायीं थी कसमे वो जो किये थे वादें । 
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो टूटी रेशम की डोर वो तेरा मुझे भुलाना ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।


शनिवार , ११/११/२०२३ , ०३:१५ PM 

अजय सरदेसाई (मेघ) 

Tuesday 7 November 2023

तलाश हैं


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@@   तलाश हैं    @@

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इस जमीं पर आसमाँ की तलाश है ।
इस दिवाने को प्यार की तलाश है ।।

मैं तन्हा हुं और तन्हा ये सफर भी हैं।
राह में किसी हमसफ़र की तलाश हैं।।

दिल पर जो गुज़री है, कैसे किसे बताएं।
ज़िन्दगी में किसी हम-सर की तलाश हैं।।
 
इन सुनी सी राहों में , कहीं तो कभी तो हम मिलेंगे ।
जाने क्यु तुझे मेरी और मुझे तेरी , ऐ रहबर , तलाश हैं।।

वो जो गर्द निली आंखें है तेरी , बड़ी गहरी हैं।
डूब न जाए कहीं, एक गोताखोर की तलाश हैं ।।

ये जो चिलमन है तेरी , दुष्मन है हमारी।
तुझे बेनकाब देखु , बड़ी उम्र से तलाश हैं।।


मंगलवार ,७/११/२३ , ४:२४ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)

 

हमसफ़र = साथ यात्रा करनेवाला
हम-सर = समान, बराबर का, बराबर वाला
रहबरराह दिखाने वाला; मार्गदर्शक



Monday 6 November 2023

किसी राह में कोई रहबर मिले ये सोचते हैं


जिस रहगुज़र चलते है ये सोचते हैं ।
किस शहर में हो बसर ये सोचते हैं ।।

हर सुबह एक नई राह जानिब ।
आज कौनसा नया सफर ये सोचते हैं ।।

न जाने कैसी ये शौक-ए-मुसाफिरी हैं ।
रोज नए शहर से गुज़रे ये सोचते हैं ।।

चलते रेहना हैं,ये मुसाफिर का नसिब ।
न जाने कब ज़िन्दगी रुक जाए ये सोचते हैं ।।

उम्र हो गयी, काश के हमराह मिले कोई ।
किसी राह में कोई रहबर मिले ये सोचते हैं ।।

मंगलवार,०७/११/२०२३ , १०:५२ AM
अजय सरदेसाई (मेघ)


रहगुज़र = रास्ता, राह , पथ 
बसर = गुजारा
शौक-ए-मुसाफिरी = hobby of a traveller 
जानिब = ओर , direction
हमराह = साथ चलाने वाला
रहबर = राह दिखाने वाला

अब ना वो प्यार न उस प्यार की बातें हैं बाकी


 

अभी इस बदन मैं थोड़ी जान हैं बाकी ।
जिंदगी ने लेने अभी कुछ इम्तेहान हैं बाकी ।।

अगर यकीन नहीं होता तो इन आंखों में देख ।
इन आंखों में अभी भी इमान हैं बाकी ।।

उम्र मेरी अब जरा ढल गई है तो क्या ।
दिल में अब भी मेरे वो जुनून हैं बाकी ।।

खेल शुरू होने में अभी थोड़ा सा वक्त हैं बाकी ।
आने कों अभी मेरे चंद खास मेहमान हैं बाकी ।।

अब ना वो प्यार न उस प्यार की बातें हैं बाकी।
जो दिए तुने उन चोटों के निशान हैं बाकी।।

सोमवार,०६/११/२३, १०:१६ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)


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Saturday 4 November 2023

दूर तक जाएगी


 

ये दास्तान तेरी-मेरी बड़ी दूर तक जाएगी।
ये बात जो तुने चलाईं हैं ,दूर तक जाएगी।।

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल ।
किसे पता था राह कितनी दूर तक जाएगी।।

मेरे प्यार का इजहार तु चाहे करे न करे।
मेरे दर्द-ए-दिल की सदा, दूर तक जाएगी।।

सभ जानते हैं तुम कातिल हो और मैं मक़्तूल।
तुम चाहे लाख छुपाओ ये, बात दूर तक जाएगी।।

ये आग जो लगी हैं दिल में ,मुहब्बत की हैं सनम।
तुम लाख कोशिशें करो बुझाने की, ये दूर तक जाएगी।।



शनिवार,४/११/२०२३ , १:१० PM

अजय सरदेसाई (मेघ)

Friday 3 November 2023

चाह कर भी मुझे तुम क्या पाओगे


 



चाह कर भी मुझे तुम क्या पाओगे ।
ग़म में मेरे अक्सर, झुलस जाओगे ।।

मैं यह नहीं कहता कि मुहब्बत न करों ।
मगर जो ये मुझसे करोगे, तो पछताओगे ।।

मेरा न कोई घर हैं ना ठिकाना हैं सनम ।
मेरे साथ जो चलोगे, तो तुम खो जाओगे ।।

मैं ये जानता हूँ के तुम्हें मुहब्बत है मुझसे ।
मैं भी इकरार करु तो, क्या निभाह पाओगे ।।

यु जख्मों को अपने न तुम बयान करना ।
अगर पुछा किसीने तो, क्या दिखा पाओगे ।।

ज़िन्दगी तो मुख्तसर हैं ऐ ख़्वाबीदा दिल ।
इस ज़िन्दगी में तुम, क्या-क्या कर पाओगे ।।

ये मोहब्बत आसान नहीं बड़े इम्तेहान लेती है ।
एक आग का दरिया है ये, क्या तैर पाओगे ।।

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झुलस = जल जाना

मुख्तसर = छोटी

ख़्वाबीदा = सपने देखने वाला


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अजय सरदेसाई 

शुक्रवार, ३/११/२०२३, ६:२४ PM

अजय सरदेसाई (मेघ)


दिल जलते हैं


जब उतरे रात ऑंगन में तो दिप जलते हैं।
जब इश्क उतरे दिल में तो दिल जलते हैं।।

कत्ल खंजर ने नहीं आंखों ने किया हैं।
अंदाज-ए-कत्ल  देखकर कामिल जलते हैं।।

तेरे हुस्न-ओ-रंग के क्या कहने।
तुझे देखकर जमिल जलते हैं।।

जब हवा तिरे गेसू लहराते हुए चले।
देखकर आसमॉं से ख़मील जलते हैं।।

तु जिस के फ़िराक़(१) में गुम हैं "मेघ" रातभर ।
रकिब उसकी फ़िराक़(२) में शामिल जलते हैं।।

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ख़मील = बादलों का झुंड

जमिल= अत्याधिक सुंदर

क़ामिल = परिपुर्ण

शामिल = एकत्रित 

रकिब = प्रतिस्पर्धी,प्रेमीका का दुसरे प्रेमी 

फ़िराक़(१) = ख़याल

फ़िराक़(२) = विरह, जुदाई 

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शुक्रवार,०३/११/२०२३, ०३:४० PM

अजय सरदेसाई (मेघ)