प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Sunday 26 November 2023

माहताब-ए-उल्फ़त


करते है आदाब और लेते है अक्सर सलाम भी

ढुंढते है चैन के दो पल और कुछ आराम भी।।

 

आवाज़ें अक्सर पुकारती है मुझे पहाड़ों से। 

पुकारती है कुछ सुबह और कुछ शाम भी।।  

 

तेरे आने से बढ़ी है बहुत आज ज़ीनत--महफ़िल

कभी हम आपको देखते है और महफ़िल--आम भी।।

 

इश्क़ अगर करना है मुज़से तो कीजिए बेबाक होकर हरदम

ज़माने का लिहाज़ आप रखो और है निज़ाम मुझे भी ।। 

 

रंगत तेरे चेहरे की जैसे शाम की लाली हो

कभी उस शाम को देख़ते है और इस शाम को भी।।  

 

शब्--वस्ल है तन्हाई है और माहताब--उल्फ़त भी है

हम माहताब--बाम देख़ते है और माहताब--उल्फ़त भी।। 

 

 



आदाब = नमस्कार

महफ़िल--आम = gathering of the common people 

बेबाक = निडर

निज़ाम = तौर,तरीका,दस्तूर , सिस्टम  

शब्--वस्ल = evening /night of lovers meeting or union 

तन्हाई = अकेलापन 

माहताब--उल्फ़त = moon of love 

माहताब--बाम = moon of the sky 


 

रविवार ,२६/११/२३ , ०६:१० PM 
अजय सरदेसाई ( मेघ


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