प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Saturday 25 November 2023

कौन हुं मैं


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🦚     कौन हुं मैं       🦚

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मैं कौन हूं ये मैं जानता न था ।
अब जान गया के तेरा खयाल हु मैं ।।

तुम वो राज हो जो मुझपर खुला ही नहीं ।
एक गहरा अंधेरा है जिसका आगाज़ हु मैं।।

तेरी तारीफ सुनकर मैं आया हूं ।
किसी ने सुनाया ही नहीं वो शेर हुं मैं ।।

ज़िक्र जिसका हो रहा है उसे होश नहीं।
उसने जो पी रखी है वो शराब हुं मैं ।।

तु जो  इतरा रही है,क्या वजह है ।
तु क्या जानती है, कौन हुं मैं ।।

वो जो दरिया था जो यहीं से गुजरा।
वो मुझी मे मिला, समंदर हुं मैं ।।

वो जो वक्त तेरा परेशानी मे गुजरा ।
गौर कर उस गुजरे वक्त का सुकुन हुं मैं।।

वो जो आसमान में अचानक अंधेरा छा गया।
उस गहरे आसमान की रंग-ओ-रौनक हुं मैं ।।


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  शनिवार २५/११/२३     

  ४:५४ PM

  अजय सरदेसाई (मेघ )

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