प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Saturday 25 November 2023

क्या करें


बिना जन्म के ही अरथी उठी बेटियों की ।
फिर चाहे कोई लाख पछताकर क्या करें ।।

वो सुन्दर कली कमसिन थी जो मुर्झा गयी ।
किसीने पानी से सिंचा नही , क्या करें ।।

बेटी थी हमारी, शादी करवा के की बिदाई ।
बेटी हमारी ,अमानत किसी और की, क्या करें ।।

बड़ी चुलबुली थी ,हसती थी , हसाती थी , अपनी थी ।
अब सिर्फ एक याद है ,अब वो किसी और की है, क्या करें ।।

उसकी आवाज नहीं थी , खुशियों की  रागिनी थी जब वो बोलती थी ।
अब महीनो बाद फोन आता है , मेरे दिल की धड़कन थी,क्या करें ।।

आज भी आंगन में उसकी खिलखिलाहट मुझे सुनाई देती है ।
जानता हु वो किसी और आंगन में चहचहाती है,क्या करें ।।

ये जानता हूं मैं के वो भी खुश है उस नए आंगन में ।
फिर भी दिल मानता नहीं,बाप का दिल है , क्या करें ।।

शनिवार,२५/११/२३, २:१२ PM 
अजय सरदेसाई (मेघ)

No comments:

Post a Comment