प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Saturday 11 November 2023

क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं


जिस राह में जिस मोड़ पर मिले थे हम ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो प्यार वो हम में तुम में जो करार था । 
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो जुनून वो कछ हासिल करने के हौंसले ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो तुझे देखकर मुस्कान मेरी और वो फिर तेरा इतराना ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो बिच दूरियों की चुभन वो मिलने की ख़ल्वते ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो रात को तेरा छत पे आना वो महताब सलोना ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।। 
वो चांदनी की रौशनी वो आँखों के इशारे तेरे ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो किताबों में मिलें सुर्ख फूल वो चिट्ठियों के सिलसिले । 
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो तेरा चलते चलते फिसलना वो मेरा तुझे संभालना ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो लरजती जुल्फों से टपकता पानी वो सावन के महीने ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो धड़कनों की धकधक वो लरजती सांसों की गुंजन ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो तेरा झूठ-मूठ का रूठना वो फिर मेरा तुझे मनाना ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो जो खायीं थी कसमे वो जो किये थे वादें । 
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।
वो टूटी रेशम की डोर वो तेरा मुझे भुलाना ।
क्या तुम भूल गयी के तुम्हें याद हैं ।।


शनिवार , ११/११/२०२३ , ०३:१५ PM 

अजय सरदेसाई (मेघ) 

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