प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Friday 3 November 2023

चाह कर भी मुझे तुम क्या पाओगे


 



चाह कर भी मुझे तुम क्या पाओगे ।
ग़म में मेरे अक्सर, झुलस जाओगे ।।

मैं यह नहीं कहता कि मुहब्बत न करों ।
मगर जो ये मुझसे करोगे, तो पछताओगे ।।

मेरा न कोई घर हैं ना ठिकाना हैं सनम ।
मेरे साथ जो चलोगे, तो तुम खो जाओगे ।।

मैं ये जानता हूँ के तुम्हें मुहब्बत है मुझसे ।
मैं भी इकरार करु तो, क्या निभाह पाओगे ।।

यु जख्मों को अपने न तुम बयान करना ।
अगर पुछा किसीने तो, क्या दिखा पाओगे ।।

ज़िन्दगी तो मुख्तसर हैं ऐ ख़्वाबीदा दिल ।
इस ज़िन्दगी में तुम, क्या-क्या कर पाओगे ।।

ये मोहब्बत आसान नहीं बड़े इम्तेहान लेती है ।
एक आग का दरिया है ये, क्या तैर पाओगे ।।

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झुलस = जल जाना

मुख्तसर = छोटी

ख़्वाबीदा = सपने देखने वाला


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अजय सरदेसाई 

शुक्रवार, ३/११/२०२३, ६:२४ PM

अजय सरदेसाई (मेघ)


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