प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Monday 13 November 2023

तुझे क्या सुनाऊं मैं दास्ताँ

तुझे क्या सुनाऊं मैं दास्ताँ ।  
ये जिन्दगी तेरा जमाल हैं ।।  
हर सांस में ख़ुशबू तेरी।
हर लम्हा तेरा ख़याल हैं।।

तुझे क्या सुनाऊं मैं दास्ताँ .......

मुझे अब भी है तेरी जुस्तजू ।
क्या तुझे भी मेरी तलाश हैं ।।  
तेरी याद में तेरी कसम।
मेरी ज़िन्दगी बेहाल हैं ।।

तुझे क्या सुनाऊं मैं दास्ताँ.......

मेरी जिस्त तेरी चाहते।
तेरा हुस्न एक सौग़ात हैं।।  
तेरा इश्क मेरी बन्दगी।
तेरे बिन दिल को वबाल हैं ।।

तुझे क्या सुनाऊं मैं दास्ताँ.......

ऐ हसीं अब तो आ भी जा।
अब और दिल को ना सता ।।
तेरे एक झलक की बात है।
मेरे दो जहाँ का सवाल हैं।।

तुझे क्या सुनाऊं मैं दास्ताँ.......

तेरे बिन मेरा वजूद क्या ।  
मैं हु बस तेरे वास्ते ।।
तू कहे तो मैं जी लू जरा । 
वार्ना मुझे ज़िन्दगी से मलाल हैं ।।

तुझे क्या सुनाऊं मैं दास्ताँ.......

 
सोमवार, १३/११/२३ , ६:४८   PM
अजय सरदेसाई (मेघ)

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वबाल = दुःख 

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