प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Saturday 30 September 2023

जाने क्या हालें दिल हम किसको सुनाएं जातें हैं


जाने क्या हालें दिल हम किसको सुनाएं जातें हैं I
वजूद का अहसास नहीं हमारे उन्हें पुकारे जाते हैं II

हर एक ग़म को तुम सितम मत समज लेना दर-अस्ल I
बहुत से सितम ऐसे भी हैं जो दिलसे गलें लगाएं जातें हैं II

जिंदगी युही ख़ाक-बसर होती है जुनून-ए-इश्क़ में दोस्तों I
हम है की लौ जलाए जातें है और वो चराग़ बुझाए जाते हैं II

एक हम हैं जो उनके लिए हर ग़म सह जाते हैं बे-तकल्लुफ़ I
और इक वो है जो हमारी नुक्ताचीनी फिर भी किए जाते हैं II

दिल भी क्या अजीब-ओ-ग़रीब चिज बनाई हैं ख़ुदा ने "मेघ" I
वो शिद्दत से तोड़ देते और हम है के फिर भी लगाए जाते है II


शनिवार, दिनांक ३०/०९/२०२३ , ४:४२ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)

 

नुक्ताचीनी = आलोचना करना

Sunday 24 September 2023

वक्त लगता हैं


सुनहरी यादें बनाने में वक्त लगता है ।
एक कहानी सुनाने में वक्त लगता है ।।

दिल का आईना हरदम साफ रखना ।
वर्ना धुल हटाने में बहुत वक्त लगता है ।।

लोग तो मिल जाते है जिंदगी मे बहुत ।
मगर सच्चे दोस्त बनाने में वक्त लगता है ।।

कर ली है जब दोस्ती तो निभाईए भी ।
निभाने के लिए मगर दोस्तों वक्त लगता है ।।

निभानी नहीं तो तोड़ दीजिए दोस्ती ।
दिल को संभलने में मगर वक्त लगता है ।।

शनिवार, २४/९/२०२३ , ३:५२ PM 
अजय सरदेसाई (मेघ )

🙏🩷🙏

Friday 15 September 2023

दिवाने थे दिवाने ही रहें


कुछ भी नहीं बदला दिवाने थे दिवाने ही रहें।

नए नए शहरों में ता-उम्र आब--दाना ढुंडते रहें।।

 

बना सके एक आशियाना अपने लिए कोई

जिस शहर से गुजरे वहाँ अंजाने थे अंजाने ही रहें

 

हमने अब  मैकदे में घर बसा लिया हैं अपना

शाम हुई तो चिराग़ जलते गए और जलाते रहें।

 

बज्म--महफिल में अब क्या बाकी रहा हैं।

कुछ उनकी सुनते रहे कुछ अपनी सुनाते रहे।।

 

और फिर जब ग़म--हिज्र--रात उफान पर रहें  

सारी दुनिया सो गयी और हम रात भर पीते रहें ।।


शुक्रवार , १५/०९/२०२३ , २२:२० PM

अजय सरदेसाई (मेघ)


सुख़न-ए-मेघ -१ (कुछ शेर)


यह कछ शेर आपकी पशे-ए-खिदमत किये हैं दोस्तों अगर अच्छे लगे तो बताईएगा जरूर 

1️⃣

ये जुरूरी नहीं के शायर कि हर सुख़न उसकी जिन्दगी का निचोड़ हैं ।
कुछ कल्पना विलास भी है और कुछ प्रतिभा का भी तो असर होता हैं ।।


2️⃣

हम खुदसे आए नहीं हैं यहॉँ लाए गए हैं। 
और तुम सोचते हो कि तुम्हारे बिमार हैं हम ।।


3️⃣

शायर हैं हम दिल में आग रखते हैं।
माचिस कि हमें जुरूरत नहीं होती।।


4️⃣

बात तो छोटीसी है मगर कुछ ऐसी है दोस्त मु'आफ़ करना।
तुम पिने कि बात करते हो और हम तो मैखाने में रहते हैं।।


5️⃣

यारों मैं तो खुशी से झूमता हुआँ जा रहा था।
न जाने कहाँ से एक तिनका आंखों में जा बसा।।


6️⃣

ये तिश्नगी तुझे पाने कि न कभी बुझेगी।
ये जानता हूँ मैं के ता-उम्र तु मुझे नहीं मिलेगी।।


7️⃣

दुआ हैं के तु जो चाहे तुझे मिल जाए।
लेकिन तुम यह दुआ करो कि खुदा मुझे मिल जाए।


8️⃣

अरमानों का एक काफिला हैं दोस्त । 
अब किसे नजरअंदाज करु और पुरा किसे करु ।।


9️⃣

यु तो सारे रास्ते तुम्हारी जानिब ही जाते हैं।
मुश्किलांत ये हैं कि इंतिखाब किसे करु।।


🔟

चराग़ जलते हैं तो रौशनी होती हैं।
उनके दिलों को जलते हुए किसने देखा हैं।।


🙏


अजय सरदेसाई (मेघ)


शुक्रवार , १५/९/२०२३ , ०७:१० PM


  



ऐ जिन्दगी


ऐ जिन्दगी ता-'उम्र तिरी खिदमत में गुजारी हैं ।
तिरे हर हुक्म कि तामिल मैंने हंसते हंसते कि हैं ।१।

तिरे इश्क के चक्कर में मैंने सब भुला दिया है।
ना वो इबादत और ना वो ख़ुलूस अब मुझ में बाकी हैं ।२।

जो वक्त गुजर गया वो तमाम तेरी जुस्तजू रही हैं।
फिर भी ऐ जिन्दगी तु होकर भी मेरी नहीं रहीं हैं ।३।

ऐसा क्या गुनाह हुवा जो तु मुझसे खफा हैं।
जिन्दगी आज तक तुमसे कुछ भी तो नहीं मिला हैं ।४।

उम्र का तकाजा हैं जिन्दगी और बदन मेरा थका हारा हैं।
अब बक्श दे मुझे पंछी पिंजरें से उड़ जाना चाहता हैं ।५।

शुक्रवार, १५/९/२०२३ , ४:५४ PM
अजय सरदेसाई (मेघ )

Thursday 14 September 2023

ख्वाब


उस जहां की तलाश हैं जिसे ख्वाबों में देखा था।

हा ये वही हैं जिसे मैनें तिरी आँखों में देखा था ।।१।।

 

एक शख्स हैं जो मुझे ख्वाब बुन बुनकर देता हैं

मैंने उसे अक्सर बादलों के घर में देखा था ।।२।।

 

दिली तमन्ना हैं की फिर से बच्चा बन जाऊ।

क्या किसी ने उसे यह जादु भी करते देखा था ।।३।।

 

आया नहीं यहाँ मैं अपने मन से,भेजा गया हुं।

अपने लिए मैंने दुसरी दुनिया का ख्वाब देखा था ।।४।।

 

जिंदगी गर हैं तो सवाल भी बहुत होंगे "मेघ"

क्या किसी ने  उसे उन सवालों के हल देते देखा था।।५।।

 

गुरुवार दिनांक १४//२३ , :३३ PM

अजय सरदेसाई (मेघ )


तु मेरी हैं मेरी हैं मेरी हैं !


फलक पर होली के रंग बिखरे हैं और तारे टिमटिमा रहे हैं।

हवा तु जरा महक के चल उसके आने का वक्त हो रहा है।।१।।

 

ये पायल कि छमछम कैसी और मौसम में ये मदहोशी छाई है। 

वस्ल कि रात धीरे से चल दिल संभल जरा देख वो आई हैं।।२।।

 

माहताब भी उसे देखकर शायद ग़ज़ल लिख रहा हैं

मेरे दिल तड़प यु जाइज़ है तुझे रश्क हो रहा हैं।।३।। 

 

उन आंखों में देख तिरी ही आरज़ू है और लबों पर मुस्कान हैं।

वो चुप है पर आंखें बोल रहीं है वो तेरी हैं तेरी हैं तेरी हैं।।४।। 

 

जरा होश में और जोश भी दिखा किस बात अंदाज़ बाकि हैं I

हिम्मत बना और हात बढ़ाकर कह दे उसे तु मेरी हैं मेरी हैं मेरी हैं।।५।।


गुरुवार दिनांक १४/९/२३ १२:५८ AM 
अजय सरदेसाई (मेघ)


 

Wednesday 13 September 2023

वहीं मिलते हैं।


दिल की किताबों में यु न झांको सुखे गुल मिलते हैं।

इसी राह पर आगे चलते रहो तो दिलजले मिलते हैं।। 


तुम्हे अगर यहाँ  मिलने से ऐतराज है तो कोई नहीं ।

जगए और भी है मिलने कि तुम जहाँ कहों वहीं मिलते हैं।


क्या तुमने देखा है उस जगह को चांदनी रात में।

आज भी चांदनी रात है चलो चलकर वहीं मिलते हैं।।


मौसम बड़ा खुश मिजाज है और वस्ल की रात है।

दुर वादियों में चलते हैं उस झिल के किनारे वहीं मिलते हैं।।


कुछ दुर साथ तुम चलो कुछ दुर साथ हम भी चलते हैं।

दुनिया बेशक कुछ भी कहें जहाँ कसक हो दिल वहीं मिलते हैं।।


बुधवार दिनांक १३/९/२०२३ , ११:१२ PM

अजय सरदेसाई (मेघ)

अफ़सोस इसी का है


 

अफ़सोस इसी का है की दिल को उनसा दर्द नहीं होता

वर्ना नाम हमारा भी मिर--ग़ालिब सा तारीख में होता I

 

ये बात और है के शेर--शायरी हम भी कर लेते है

खुदा काश हमारे पास भी उनसा रंग--बहर होता I

 

कौनसी वो तिश्नगी है जो पि जाते है मिर दर्द--ज़िन्दगी  

फिर नैरंग--ख़्याल आता है और एक शेर है पैदा होता I

 

एक जमाना हो रखा है मिरि कोशिशों को बावजूद इसके

ऐसा क्यूँकर है की ग़ज़ल को मिरि कोई रंग--बहर होता I

 

अगर होते मिर या फिर होते ग़ालिब इस ज़माने में 'मेघ'

कसम खुदा की मैंने यह इल्म और हुनर उनसे चुराया होता I

 

बुधवार , १३/०९/२०२३ , ०५:३६ PM

अजय सरदेसाई ( मेघ )

Saturday 9 September 2023

तुम चली जाओ


दिल की गहराईयों में यु झांकने की कोशिश करो     

इसकी खामोश सदाओं में कहीं तुम खो जाओ I

तुमको कभी रास आएगी मिरि ये दरियादिली

जाने कब सैलाब आए और कहीं तुम बह जाओ I

जरूरत तो बहुत है मिरे दर्द--दिल को तिरी जानाॅं

फिर भी जाना चाहो अगर तो फिर तुम चली जाओ I

गर हकिकत मैं बयां कर दू तो यक़ीनन डर जाओगी

सुने बगैर ही अगर जो जाना चाहो तो फिर चली जाओ I

मिरि ज़िन्दगी के किस्से बड़ी मुश्किल से समज पाओगी

अगर वक़्त नहीं है तुम्हारे पास तो फिर तुम चली जाओ I


शनिवार , दिनांक : ०८/०९/२०२३ , ०७:०१० 

अजय सरदेसाई ( मेघ )