प्रस्तावना
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून ....
Saturday 30 September 2023
जाने क्या हालें दिल हम किसको सुनाएं जातें हैं
Sunday 24 September 2023
वक्त लगता हैं
सुनहरी यादें बनाने में वक्त लगता है ।
Friday 15 September 2023
दिवाने थे दिवाने ही रहें
कुछ भी नहीं
बदला दिवाने थे दिवाने ही
रहें।
नए
नए शहरों में ता-उम्र
आब-ओ-दाना ढुंडते
रहें।।
न बना सके एक
आशियाना अपने लिए कोई
।
जिस
शहर से गुजरे वहाँ
अंजाने थे अंजाने ही
रहें ।।
हमने
अब मैकदे
में घर बसा लिया
हैं अपना ।
शाम
हुई तो चिराग़ जलते
गए और जलाते रहें।।
बज्म-ए-महफिल में
अब क्या बाकी रहा
हैं।
कुछ
उनकी सुनते रहे कुछ अपनी
सुनाते रहे।।
और
फिर जब ग़म-ए-हिज्र-ओ-रात उफान
पर रहें ।
सारी
दुनिया सो गयी और
हम रात भर पीते रहें ।।
शुक्रवार , १५/०९/२०२३ , २२:२० PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
सुख़न-ए-मेघ -१ (कुछ शेर)
यह कछ शेर आपकी पशे-ए-खिदमत किये हैं दोस्तों अगर अच्छे लगे तो बताईएगा जरूर
1️⃣
कुछ कल्पना विलास भी है और कुछ प्रतिभा का भी तो असर होता हैं ।।
2️⃣
और तुम सोचते हो कि तुम्हारे बिमार हैं हम ।।
3️⃣
माचिस कि हमें जुरूरत नहीं होती।।
4️⃣
तुम पिने कि बात करते हो और हम तो मैखाने में रहते हैं।।
5️⃣
न जाने कहाँ से एक तिनका आंखों में जा बसा।।
6️⃣
ये जानता हूँ मैं के ता-उम्र तु मुझे नहीं मिलेगी।।
7️⃣
लेकिन तुम यह दुआ करो कि खुदा मुझे मिल जाए।
8️⃣
अब किसे नजरअंदाज करु और पुरा किसे करु ।।
9️⃣
मुश्किलांत ये हैं कि इंतिखाब किसे करु।।
🔟
उनके दिलों को जलते हुए किसने देखा हैं।।
🙏
अजय सरदेसाई (मेघ)
शुक्रवार , १५/९/२०२३ , ०७:१० PM
ऐ जिन्दगी
तिरे हर हुक्म कि तामिल मैंने हंसते हंसते कि हैं ।१।
तिरे इश्क के चक्कर में मैंने सब भुला दिया है।
ना वो इबादत और ना वो ख़ुलूस अब मुझ में बाकी हैं ।२।
जो वक्त गुजर गया वो तमाम तेरी जुस्तजू रही हैं।
फिर भी ऐ जिन्दगी तु होकर भी मेरी नहीं रहीं हैं ।३।
ऐसा क्या गुनाह हुवा जो तु मुझसे खफा हैं।
जिन्दगी आज तक तुमसे कुछ भी तो नहीं मिला हैं ।४।
उम्र का तकाजा हैं जिन्दगी और बदन मेरा थका हारा हैं।
अब बक्श दे मुझे पंछी पिंजरें से उड़ जाना चाहता हैं ।५।
शुक्रवार, १५/९/२०२३ , ४:५४ PM
अजय सरदेसाई (मेघ )
Thursday 14 September 2023
ख्वाब
उस जहां की तलाश हैं जिसे ख्वाबों में देखा था।
हा ये वही हैं जिसे मैनें तिरी आँखों में देखा था ।।१।।
एक शख्स हैं जो मुझे ख्वाब बुन बुनकर देता हैं ।
मैंने उसे अक्सर बादलों के घर में देखा था ।।२।।
दिली तमन्ना हैं की फिर से बच्चा बन जाऊ।
क्या किसी ने उसे यह जादु भी करते देखा था ।।३।।
आया नहीं यहाँ मैं अपने मन से,भेजा गया हुं।
अपने लिए मैंने दुसरी दुनिया का ख्वाब देखा था ।।४।।
जिंदगी गर हैं तो सवाल भी बहुत होंगे "मेघ" ।
क्या किसी ने उसे उन सवालों के हल देते देखा था।।५।।
गुरुवार दिनांक १४/९/२३ , ५:३३ PM
अजय सरदेसाई (मेघ )
तु मेरी हैं मेरी हैं मेरी हैं !
फलक पर होली के रंग बिखरे हैं और तारे टिमटिमा रहे हैं।
ऐ
हवा तु जरा महक के चल उसके आने का वक्त हो रहा है।।१।।
ये
पायल कि छमछम कैसी और मौसम में ये मदहोशी छाई है।
ऐ
वस्ल कि रात धीरे से चल ऐ दिल संभल जरा देख वो आई हैं।।२।।
माहताब
भी उसे देखकर शायद ग़ज़ल लिख रहा हैं ।
ऐ
मेरे दिल तड़प न यु जाइज़ है तुझे रश्क हो रहा हैं।।३।।
उन
आंखों में देख तिरी ही आरज़ू है और लबों पर मुस्कान हैं।
वो
चुप है पर आंखें बोल रहीं है वो तेरी हैं तेरी हैं तेरी हैं।।४।।
जरा
होश में आ और जोश भी दिखा किस बात अंदाज़ बाकि हैं I
हिम्मत
बना और हात बढ़ाकर कह दे उसे तु मेरी हैं मेरी हैं मेरी हैं।।५।।
Wednesday 13 September 2023
वहीं मिलते हैं।
दिल की किताबों में यु न झांको सुखे गुल मिलते हैं।
इसी राह पर आगे चलते रहो तो दिलजले मिलते हैं।।
तुम्हे अगर यहाँ मिलने से ऐतराज है तो कोई नहीं ।
जगए और भी है मिलने कि तुम जहाँ कहों वहीं मिलते हैं।
क्या तुमने देखा है उस जगह को चांदनी रात में।
आज भी चांदनी रात है चलो चलकर वहीं मिलते हैं।।
मौसम बड़ा खुश मिजाज है और वस्ल की रात है।
दुर वादियों में चलते हैं उस झिल के किनारे वहीं मिलते हैं।।
कुछ दुर साथ तुम चलो कुछ दुर साथ हम भी चलते हैं।
दुनिया बेशक कुछ भी कहें जहाँ कसक हो दिल वहीं मिलते हैं।।
बुधवार दिनांक १३/९/२०२३ , ११:१२ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
अफ़सोस इसी का है
अफ़सोस इसी का है की दिल को उनसा दर्द नहीं होता
वर्ना नाम हमारा भी मिर-ओ-ग़ालिब सा तारीख में होता I
ये
बात और है के शेर-ओ-शायरी हम भी कर लेते है
ऐ
खुदा काश हमारे पास भी उनसा रंग-ओ-बहर होता I
कौनसी
वो तिश्नगी है जो पि जाते है मिर दर्द-ए-ज़िन्दगी
फिर
नैरंग-ए-ख़्याल आता है और एक शेर है पैदा होता I
एक
जमाना हो रखा है मिरि कोशिशों को बावजूद इसके
ऐसा क्यूँकर
है की ग़ज़ल को मिरि न कोई रंग-ओ-बहर होता I
अगर
होते मिर या फिर होते ग़ालिब इस ज़माने में 'मेघ'
कसम
खुदा की मैंने यह इल्म और हुनर उनसे चुराया होता I
बुधवार
, १३/०९/२०२३ , ०५:३६ PM
अजय
सरदेसाई ( मेघ )
Saturday 9 September 2023
तुम चली जाओ
दिल की गहराईयों में यु झांकने की कोशिश न करो
इसकी खामोश सदाओं में कहीं तुम खो न जाओ I
तुमको न कभी रास आएगी मिरि ये दरियादिली
न जाने कब सैलाब आए और कहीं तुम बह न जाओ I
जरूरत तो बहुत है मिरे दर्द-ए-दिल को तिरी जानाॅं
फिर भी जाना चाहो अगर तो फिर तुम चली जाओ I
गर हकिकत मैं बयां कर दू तो यक़ीनन डर जाओगी
सुने बगैर ही अगर जो जाना चाहो तो फिर चली जाओ I
मिरि ज़िन्दगी के किस्से बड़ी मुश्किल से समज पाओगी
अगर वक़्त नहीं है तुम्हारे पास तो फिर तुम चली जाओ I
शनिवार , दिनांक : ०८/०९/२०२३ , ०७:०१०
अजय सरदेसाई ( मेघ )