प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Wednesday 13 September 2023

अफ़सोस इसी का है


 

अफ़सोस इसी का है की दिल को उनसा दर्द नहीं होता

वर्ना नाम हमारा भी मिर--ग़ालिब सा तारीख में होता I

 

ये बात और है के शेर--शायरी हम भी कर लेते है

खुदा काश हमारे पास भी उनसा रंग--बहर होता I

 

कौनसी वो तिश्नगी है जो पि जाते है मिर दर्द--ज़िन्दगी  

फिर नैरंग--ख़्याल आता है और एक शेर है पैदा होता I

 

एक जमाना हो रखा है मिरि कोशिशों को बावजूद इसके

ऐसा क्यूँकर है की ग़ज़ल को मिरि कोई रंग--बहर होता I

 

अगर होते मिर या फिर होते ग़ालिब इस ज़माने में 'मेघ'

कसम खुदा की मैंने यह इल्म और हुनर उनसे चुराया होता I

 

बुधवार , १३/०९/२०२३ , ०५:३६ PM

अजय सरदेसाई ( मेघ )

No comments:

Post a Comment