प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Thursday 14 September 2023

तु मेरी हैं मेरी हैं मेरी हैं !


फलक पर होली के रंग बिखरे हैं और तारे टिमटिमा रहे हैं।

हवा तु जरा महक के चल उसके आने का वक्त हो रहा है।।१।।

 

ये पायल कि छमछम कैसी और मौसम में ये मदहोशी छाई है। 

वस्ल कि रात धीरे से चल दिल संभल जरा देख वो आई हैं।।२।।

 

माहताब भी उसे देखकर शायद ग़ज़ल लिख रहा हैं

मेरे दिल तड़प यु जाइज़ है तुझे रश्क हो रहा हैं।।३।। 

 

उन आंखों में देख तिरी ही आरज़ू है और लबों पर मुस्कान हैं।

वो चुप है पर आंखें बोल रहीं है वो तेरी हैं तेरी हैं तेरी हैं।।४।। 

 

जरा होश में और जोश भी दिखा किस बात अंदाज़ बाकि हैं I

हिम्मत बना और हात बढ़ाकर कह दे उसे तु मेरी हैं मेरी हैं मेरी हैं।।५।।


गुरुवार दिनांक १४/९/२३ १२:५८ AM 
अजय सरदेसाई (मेघ)


 

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