प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Friday 15 September 2023

ऐ जिन्दगी


ऐ जिन्दगी ता-'उम्र तिरी खिदमत में गुजारी हैं ।
तिरे हर हुक्म कि तामिल मैंने हंसते हंसते कि हैं ।१।

तिरे इश्क के चक्कर में मैंने सब भुला दिया है।
ना वो इबादत और ना वो ख़ुलूस अब मुझ में बाकी हैं ।२।

जो वक्त गुजर गया वो तमाम तेरी जुस्तजू रही हैं।
फिर भी ऐ जिन्दगी तु होकर भी मेरी नहीं रहीं हैं ।३।

ऐसा क्या गुनाह हुवा जो तु मुझसे खफा हैं।
जिन्दगी आज तक तुमसे कुछ भी तो नहीं मिला हैं ।४।

उम्र का तकाजा हैं जिन्दगी और बदन मेरा थका हारा हैं।
अब बक्श दे मुझे पंछी पिंजरें से उड़ जाना चाहता हैं ।५।

शुक्रवार, १५/९/२०२३ , ४:५४ PM
अजय सरदेसाई (मेघ )

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