प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Friday 15 September 2023

सुख़न-ए-मेघ -१ (कुछ शेर)


यह कछ शेर आपकी पशे-ए-खिदमत किये हैं दोस्तों अगर अच्छे लगे तो बताईएगा जरूर 

1️⃣

ये जुरूरी नहीं के शायर कि हर सुख़न उसकी जिन्दगी का निचोड़ हैं ।
कुछ कल्पना विलास भी है और कुछ प्रतिभा का भी तो असर होता हैं ।।


2️⃣

हम खुदसे आए नहीं हैं यहॉँ लाए गए हैं। 
और तुम सोचते हो कि तुम्हारे बिमार हैं हम ।।


3️⃣

शायर हैं हम दिल में आग रखते हैं।
माचिस कि हमें जुरूरत नहीं होती।।


4️⃣

बात तो छोटीसी है मगर कुछ ऐसी है दोस्त मु'आफ़ करना।
तुम पिने कि बात करते हो और हम तो मैखाने में रहते हैं।।


5️⃣

यारों मैं तो खुशी से झूमता हुआँ जा रहा था।
न जाने कहाँ से एक तिनका आंखों में जा बसा।।


6️⃣

ये तिश्नगी तुझे पाने कि न कभी बुझेगी।
ये जानता हूँ मैं के ता-उम्र तु मुझे नहीं मिलेगी।।


7️⃣

दुआ हैं के तु जो चाहे तुझे मिल जाए।
लेकिन तुम यह दुआ करो कि खुदा मुझे मिल जाए।


8️⃣

अरमानों का एक काफिला हैं दोस्त । 
अब किसे नजरअंदाज करु और पुरा किसे करु ।।


9️⃣

यु तो सारे रास्ते तुम्हारी जानिब ही जाते हैं।
मुश्किलांत ये हैं कि इंतिखाब किसे करु।।


🔟

चराग़ जलते हैं तो रौशनी होती हैं।
उनके दिलों को जलते हुए किसने देखा हैं।।


🙏


अजय सरदेसाई (मेघ)


शुक्रवार , १५/९/२०२३ , ०७:१० PM


  



No comments:

Post a Comment