प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Thursday 14 September 2023

ख्वाब


उस जहां की तलाश हैं जिसे ख्वाबों में देखा था।

हा ये वही हैं जिसे मैनें तिरी आँखों में देखा था ।।१।।

 

एक शख्स हैं जो मुझे ख्वाब बुन बुनकर देता हैं

मैंने उसे अक्सर बादलों के घर में देखा था ।।२।।

 

दिली तमन्ना हैं की फिर से बच्चा बन जाऊ।

क्या किसी ने उसे यह जादु भी करते देखा था ।।३।।

 

आया नहीं यहाँ मैं अपने मन से,भेजा गया हुं।

अपने लिए मैंने दुसरी दुनिया का ख्वाब देखा था ।।४।।

 

जिंदगी गर हैं तो सवाल भी बहुत होंगे "मेघ"

क्या किसी ने  उसे उन सवालों के हल देते देखा था।।५।।

 

गुरुवार दिनांक १४//२३ , :३३ PM

अजय सरदेसाई (मेघ )


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