प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Saturday 30 September 2023

जाने क्या हालें दिल हम किसको सुनाएं जातें हैं


जाने क्या हालें दिल हम किसको सुनाएं जातें हैं I
वजूद का अहसास नहीं हमारे उन्हें पुकारे जाते हैं II

हर एक ग़म को तुम सितम मत समज लेना दर-अस्ल I
बहुत से सितम ऐसे भी हैं जो दिलसे गलें लगाएं जातें हैं II

जिंदगी युही ख़ाक-बसर होती है जुनून-ए-इश्क़ में दोस्तों I
हम है की लौ जलाए जातें है और वो चराग़ बुझाए जाते हैं II

एक हम हैं जो उनके लिए हर ग़म सह जाते हैं बे-तकल्लुफ़ I
और इक वो है जो हमारी नुक्ताचीनी फिर भी किए जाते हैं II

दिल भी क्या अजीब-ओ-ग़रीब चिज बनाई हैं ख़ुदा ने "मेघ" I
वो शिद्दत से तोड़ देते और हम है के फिर भी लगाए जाते है II


शनिवार, दिनांक ३०/०९/२०२३ , ४:४२ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)

 

नुक्ताचीनी = आलोचना करना

No comments:

Post a Comment