प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Tuesday 30 January 2024

पयाम-ए-मुहब्बत अर्ज मैं करता हूँ


पयाम--मुहब्बत अर्ज मैं करता हूँ

हर इन्सान से मैं प्यार करता हूँ ।।


रात कितनी भी हो काली, गुमान नहीं।

मै बस सुबह का इंतजार करता हूँ ।।


जिन्दगी के गुलशन में फुल तो है काटे भी।

बस तुम्हे काटे मिले ये मुराद करता हूँ ।।


ख़ैर-मक़्दम तुम्हारा इस महफ़िल--समा'में जानाँ

अब माहौल बनाया है तुने तो एक ग़ज़ल पेश करता हूँ ।।

 

एक ग़ज़ल आई है मेरे लबोंपर मिरे दिलसे निकलकर

मिरे लबों से तिरे दिल मे उतरने का मैं इंतजार करता हूँ ।।


मिरे दिल-ए-हर तिरी आंखों में खिला जो तबस्सुम है।

तिरे लबोंपर भी शगुफ्ता हो ये इंतज़ार करता हूँ ।।

 


पयाम--मुहब्बत = प्यार का सन्देश  message of love ,

अर्ज = निवेदन

गुमान = विचार

गुलशन = बाग़

मुराद = अभिलाषा

ख़ैर-मक़्दम = स्वागत

महफ़िल--समा' = क़व्वाली की एक सभा

जानाँ = प्रेमपात्र

दिल-ए-हर = महबूब ,beloved

तबस्सुम = मुस्कराहट

शगुफ्ता = कुसुमित होना , to flower 


मंगलवार , ३०//२०२४  , ०३:१० PM

अजय सरदेसाई (मेघ)



Tuesday 23 January 2024

मी कुठे जात आहे


तो सुर्य पहा नभात आणि प्रतिबिंब डोहांत आहे

कोण सत्य कोण मिथ्य हा एकची प्रश्न आहे ।।


अरे वेड्या मनारे हा काय प्रश्न झाला।

जो जास्त ताप देतो तोची सत्य आहे ।।


भ्रम सहज होतो नलगे रे सायास फार

सत्य कटू  फार कठिण पचण्यास आहे।।


चांदण्या चमकती हळुवार भोभाटा नाही फार

पण गर्भात रे त्यांच्या नव विश्व निर्मीती आहे।।


हा सुर्य दिसे तेजस्वी,ओजस जोवर डोळ्यांत

मिटताच डोळे जाणो, मी कुठे जात आहे ।।

 

मंगळवार, २३//२०२४ , :१५ PM

अजय सरदेसाई (मेघ)


Friday 19 January 2024

तिरी तीखीं नजरों ने है बहुत सताया मुझको


तिरी तीखीं नजरों ने है बहुत सताया मुझको।

कभी तो यार प्यार की नजरों से भी देख मुझको।।


मेरे प्यार का अभी एहसास नहीं तुझे।

कभी आंखों मे आंखें डाल के देख मुझको।।


तिरी दिल की गहराइयों मे आज भी रहता हूं।

पाओगे वहीं मुझे सनम कभी दिलसे खोज मुझको।।


तेरी मुहब्बत में डूब कर अभी मैं उभरा नहीं हुं

या तो हात देकर उठाले या डूबादे मुझको।।


शब--वस्ल में इंतजार कि इंतेहा हो गई।

अब और तड़पा अब तो आके मिल मुझको।।

 

शुक्रवार १९//२०२४ , :४० PM

अजय सरदेसाई (मेघ)


Thursday 18 January 2024

रखा है


लज्जत-ए-ग़म को दर्द ने बढ़ा रखा है।
वर्ना इस दुनिया में और क्या रखा है।।

तुम्हे आता नहीं कुछ दर्द देने के सिवा।
हमने अब दर्द को ही दवा बना रखा है।।

जिन्दगी कुछ देती नही कुछ लिए बगैर ।
हमने इस जिन्दगी को आज़मा रखा है ।।

मैं युही बेताल्लुक़ गुजर रहा था गलीसे तेरे।
लोगों ने मुझे तेरा आशिक समज रखा है।।

चार घड़ी जो दर्द मिला आप बिखर गए।
हमने जिन्दगी भर दर्द को साथ रखा है।।

हाँ ये बात और है के मैं जिन्दा ही नहीं।
वर्ना जिन्दगी को मैंने शिशे में उतार रखा है।।

दो पल खुशी-खुशी जो तेरे साथ जिए।
उन पलों को मैंने दिल में संभाल रखा है।।

फना होंगे सनम तिरे प्यार में हम जरूर एक दिन।
हम वो परवाने है जिन्होंने चराग़ों को जला रखा है।।

मेरी आँखें बिछी है ,तिरे आनेकी देर है फकत।
हमने फुलों तेरी राहों में बिछाकर रखा है ।। 

 

 

गुरुवार , १८/०१/२०२४ , ६:४८
अजय सरदेसाई (मेघ)

Wednesday 17 January 2024

गाणे


आयुष्याच्या या वळणावर मी तुझेच गाणे गातो ।
मी रडत नाही मी झुरत नाही मी प्रेम गाणे गातो।।

जन्मा पासुन आजवरी तुच मला शिकविले ।
तुझ्या च या शिक्षेचे मी आज पोवाडे गातो।।

तु दाखविली सुंदर स्वप्ने अन् मी ती रंगवली।
स्वप्नांच्या त्या हिंदोळ्यावर मी आनंद तराणे गातो।।

सुरवंटांची होताना फुलपाखरें मी रोज पहातो।
सुरवंटांसाठीच त्या बागेत मी किलबिल गाणी गातो।।

शुद्ध निसर्ग तुच निर्मीला,जीव त्यात मस्त रमतो।
मेघ गर्जती श्रावणात पहा ना, मी सरींचे गाणे गातो।।

व्योमरापवायूरतेज अन पृथ्वी चे हे शरीर माझे।
पंचभुते वसली स्पंदनात जी ,मी त्यांचे गाणे गातो।।
 
गुरुवार, १८/१/२०२४ , १२:४८ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)

आठवणी


तुझ्या प्रिती च्या बकुळ फुलांनी गुंफलेल्या आठवणी

त्या जिवलग हळुवार क्षणांनी विणलेल्या आठवणी ।।

 

हिंदोळ्यावर तु उंच झुलावे, माझे मन ही हिंदोळा व्हावे।

आकाशी तू अलगत झेपतांना टिपलेल्या आठवणी।।

 

जणू हिरवी पैठणी जेव्हा रानांत मोर नाचे श्रावणी।

ती पैठणी तू नेसतांना हृदयांत साठल्या आठवणी।।

 

तू यमन आळवावा मी सुरांत तुझ्या सूर मिसळावा।

मावळतीच्या यमन रंगांत मिसळलेल्या आठवणी।।

 

रात्र सारी जागून सरली पहा उगवला शुक्र तारा

मादक स्पर्शांनी तुझ्या गंधाळलेल्या आठवणी।।

 

जगापासून दूर यावे ,डोंगर दऱ्यांत हरवून जावे।

आपल्याच आवाजांच्या प्रतिध्वनीत आठवणी।।

 

गुरुवार  , १८/०१/२०२४ , १०:२५ AM

अजय सरदेसाई ( मेघ )

 

 

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               गायत्री : ही कविता तुझ्यासाठी

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देखु



दिलबर को देखु या नजारों को देखु ।
दोनों प्यारे है पहले किसे देखु।।

माहताब जब भी निकलें फलक पर।
रौशनी में तुम्हें मै जी भर के देखु ।।

दिल्लगियोंसे दिल अब उब चुका है ।
सोचता हूं अब  दिल लगाके देखु ।।

दुश्मनी की मगर कोई ठेच न लगी ।
सोचता हूं दोस्ती कर के देखु ।।

अब तक तो फरेब से ही काम लिया।
सोचता हूं हक़ से भी काम लेके देखु ।।

अक्सर धड़कन मेरी थम सी जाती है ।
जब मैं तुम्हें किसी और के साथ देखु ।।

फासले जो हम तुम में है क्या मिटेंगे ।
सोचता हूं के अपनी हद से गुज़र के देखु ।।

इतना बे-इंतिहा मैं चाहता हूँ तुमको।
सोचता हूं तुमपे इक ग़ज़ल कहके देखु ।।

क्या आजमाकर देखु मुहब्बत तुम्हारी ।
एक दिन तुमसे जरा सा रुठ के देखु ।।

कहते हैं इश्क एक आग का दरिया है।
इस दरिया में एक बार डूब के देखु ।।

जिन्दगी बड़ी बेरंग चल रही है।
कुछ रंगीन ख़्वाब बुन के देखु।।

वक्त जो जाता है फिर आता नहीं।
राह में कुछ यादें क्या समेट के देखु।।

कुछ चांदनी बाकी है मेरे रुह की अभी ।
तु कहे तो फलक पर उसे उड़ा के देखु ।।

कुछ हसीन पल है जो हमने साथ गुजारे।
तुम कहो तो उन पलों को बिखरके देखु।।

देखो वहाँ मेरी राह जा रही है ।
जिन्दगी क्या तुझे वहाँ मोड़ के देखु ।।

तुम ख़्वाब हो या सच हो किसे खबर ।
क्या तुझे बस एक बार मैं छू के देखु।।

 

बुधवार ,१७/१/२०२४ , ११:५१ PM

अजय सरदेसाई (मेघ)