प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Thursday 18 January 2024

रखा है


लज्जत-ए-ग़म को दर्द ने बढ़ा रखा है।
वर्ना इस दुनिया में और क्या रखा है।।

तुम्हे आता नहीं कुछ दर्द देने के सिवा।
हमने अब दर्द को ही दवा बना रखा है।।

जिन्दगी कुछ देती नही कुछ लिए बगैर ।
हमने इस जिन्दगी को आज़मा रखा है ।।

मैं युही बेताल्लुक़ गुजर रहा था गलीसे तेरे।
लोगों ने मुझे तेरा आशिक समज रखा है।।

चार घड़ी जो दर्द मिला आप बिखर गए।
हमने जिन्दगी भर दर्द को साथ रखा है।।

हाँ ये बात और है के मैं जिन्दा ही नहीं।
वर्ना जिन्दगी को मैंने शिशे में उतार रखा है।।

दो पल खुशी-खुशी जो तेरे साथ जिए।
उन पलों को मैंने दिल में संभाल रखा है।।

फना होंगे सनम तिरे प्यार में हम जरूर एक दिन।
हम वो परवाने है जिन्होंने चराग़ों को जला रखा है।।

मेरी आँखें बिछी है ,तिरे आनेकी देर है फकत।
हमने फुलों तेरी राहों में बिछाकर रखा है ।। 

 

 

गुरुवार , १८/०१/२०२४ , ६:४८
अजय सरदेसाई (मेघ)

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