प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Wednesday 16 March 2022

कान्ह्याचे स्मित मधुर पाहून द्रवे त्रिभुवन


उन पावसाचा खेळ, विहंगम दॄष्याचा नजारा

मोर नाचतो रे दुर बनांत, फुलवुन पिसारा

सण सण वाहे वारा, विज कडाडे अवचित

जग न्हाऊन निघाले त्या रुपेरी क्षणांत

आले मेघांचे कळप डोंगर माथ्या वरुन

बरसवित जल धारा झर झर सर सर

जल वाहे नागमोडी घेऊनी खडकांचा आसरा

इवल्या ओहळाचा झाला मोठा केवढा पसारा

सॄष्टी बहरुन आली. पाखरे पावसात न्हाली

धरणी च्या अंगावर ही काय जादू झाली

अरुण पाहे डोकावून .त्याला आढावा आला काळा मेघ

आकाशांत उमटली एक विलक्षण इंद्रधनू रेघ

मैफिल बेडकांची पहा हो भरली शेतांत

गाण्यांत त्यांना आता सर्व कीटकांची साथ

दूर दऱ्यांतून येती कुणाच्या बासुरी चे सूर

कान्हा शांत पहुडून आळवतो  मेघ मल्हार

हृदयी घालमेल, शोधे यशोधा कान्ह्यास सर्वत्र

कान्हा खेळतो गोवर्धनी जमवून सर्व गोप मित्र

कान्हा वाजवी बांसुरी, फुके सृष्टीत प्राण

गायींच्या गळयांत वाजे घंटा किण किण

सृजन हे कान्ह्याचे ,सोहळा पाहती स्वर्गांतून

स्मित मधुर कान्ह्याचे पाहून द्रवे त्रिभुवन

स्मित मधुर कान्ह्याचे पाहून द्रवे त्रिभुवन

 

अजय सरदेसाई (मेघ )

गुरुवार , १७/०३/२०२२

१०:२५ AM

चल



पुढे वाट  काळोखी

चल ओंजळीत 

उजेड घेऊन जाऊ

 

नसुदे निवारा कुठे

चल चांदण्यांचे

पांघरून करुन राहु

 

हा प्रवास आहे दुर्धर

चल वाटेसाठी

स्वप्नांची शिदोरी घेऊ

 

येतील वाटेत क्षण

चल गुंफून

आठवणी मनांत ठेऊ

 

अजय सरदेसाई (मेघ)

१६/३/२०२२ , ७:०० PM


Saturday 12 March 2022

क्या वहीं तुम हो, या फिर कोई और ?

 


यह धरती यह सूरज यह चाँद यह सितारे

यह हवा यह पानी यह रोशनी यह चांदनी

वह कौन है, जो इनका चित्रकार  है?

क्या वहीं तुम हो, या फिर कोई और?

 

यह लोग,अपने-परए ,जो  चारों ओर है

यह लोग जो जागते है,सोते है,हँसते है, रोते है

कौन है जो इन का पोषण है करता ?

क्या वहीं तुम हो, या फिर कोई और? 

 

यह हर्ष यह बिषाद यह प्रेम यह द्वेष विशेष 

यह काम यह क्रोध यह मोह यह इर्षा अवशेष

इन संवेदनाओं का स्रोत क्या है, बिंदु कौन है ?

क्या वहीं तुम हो, या फिर कोई और?

 

यह जो अजब सी बेचैनी महसूस हो रही है

दिल और जेहन पर जो छा गयी है

वह कौन है,जो है बेचैन,और क्यों है?

क्या वहीं तुम हो, या फिर कोई और?

 

मेरी चारों ओर भरी यह जो दुनिया दिख रही है

यहाँ से नज़र की क्षितिज तक जो फैली है   

यह अंश किसका है, कौन इसका अधिप है?

क्या वहीं  तुम हो, या फिर कोई और?

 

यह खोने का खौफ, वह पानेकी उम्मीद

यह जेहन में ख़याल, वह दिल की कश्मकश

वह कौन है, जिसके दामन से धुप छाव है?

क्या वहीं तुम हो, या फिर कोई और?


अजय सरदेसाई ( मेघ )

शनिवार , १२/०३/२०२२

०८:०५ PM


Friday 11 March 2022

क्या वह मै हूँ, या फिर कोई और ?


यह धरती यह सूरज यह चाँद यह सितारे

यह हवा यह पानी यह रोशनी यह चांदनी 

वह कौन है, जो इन्हे देख रहा है?

क्या वह मै हूँ, या फिर कोई और?

यह लोग जो अपने लगते है, मेरी चारों ओर है

यह लोग जो जागते है,सोते है,हँसते है, रोते है

वह कौन है, जो इन्हे जानता है, पहचानता है?

क्या वह मै हूँ, या फिर कोई और?

किसे होता है, यह हर्ष यह बिषाद यह प्रेम यह द्वेष?

किस की है, यह संवेदनाएँ, जो भितर से जगती है?

क्या वह मै हूँ, या फिर कोई और?

यह जो अजब सी बेचैनी महसूस हो रही है

वह कौन है, जो बेचैन है, और क्यों है?

क्या वह मै हूँ, या फिर कोई और?

यह चारों ओर जो दुनिया भरी दिख रही है

वह कौन है, जो इसका अंश है?

क्या वह मै हूँ, या फिर कोई और?

यह कश्मकश किसकी है, यह ख़याल किसे आते है?

वह कौन है, जो यह सब महसूस करता है?

क्या वह मै हूँ, या फिर कोई और?

क्या मै यह शरीर हूँ या कोई और जो इस शरीर में बैठा है ?

कौन है वह जो अंदर है , परमेश्वर !! या मै , या फिर कोई और ?


 गुरुवार दिनांक ११/३/२०२२ , :३३

अजय सरदेसाई ( मेघ )

Monday 7 March 2022

दिलजलों को मुहब्बत रास नहीं होती

 


तस्वीर तिरी फ़ना, दिल से नहीं होती I

तसव्वुर से रुख़्सत, तुम क्यों नहीं होती I

बड़े बेआबरू होकर तिरे दर से निकले है I

क्यों कम-असर फिर भी तिरी चाहत नहीं होती I

 

कहते है दिलजलों को मुहब्बत रास नहीं होती I

क्यूँकर फिर भी ये शय दिल से जुदा नहीं होती I

कुछ इस कदर तिरी चाहत का सुरूर छाया है I

हद-ए-गुमाँ से परे, की बात बयान नहीं होती I

 

अजय सरदेसाई (मेघ)

सोमवार , ०७/०३/२०२२

०९:४० PM

फलक से उतरी है तारों की महफ़िल

 


फलक से उतरी है तारों की महफ़िल
झील में जले है ज्यू चिराग़ तुम देखो ।
यह नज़ारा मुख़्तसर ही सही लेकिन
आँखों से इसे दिलमे उतारकर तो देखो ।
सुकून-ए-रूह-ओ-ज़ेहन मिलती है ऐ "मेघ"
जरा तुम कुदरत की ये करिश्माई तो देखो ।

अजय सरदेसाई (मेघ)

सोमवार, ०७/०३/२०२२

०६:०० PM

सुकून-ए-रूह-ओ-ज़ेहन - peace of soul and mind 

Saturday 5 March 2022

आईना-ए-किरदार


इम्तेहान तो बेहतरीन  लिए तू ने ऐ ज़िन्दगी ।
इनसे ही तो जीनेका सुरूर बनता है ।
मैं डरा नहीं ,मैं थमा नहीं ,मैं टुटा नहीं ।
यहीं मिरे आईना-ए-किरदार-ए-गुरुर  बनता है ।

इम्तेहान – tests , परीक्षा
बेहतरीन - उत्तम , बहुत अच्छे
सुरूर - नशा
आईना-ए-किरदार – mirror of character
गुरुर – pride

-
अजय सरदेसाई (मेघ)-
शनिवार , ५/३/२०२२

राहों में कई इम्तेहान आते रहे I
ज़िन्दगी में ये संग-ए-मिल गुजरते रहे I
बड़ा कठिन रहा ये सफर मगर I
ज़िन्दगी हम तिरे साथ चलते रहे I
 
संग-ए-मिल - मिल का पत्थर , milestone

-
अजय सरदेसाई (मेघ)-
शनिवार , ५/३/२०२२
०९: ३५  PM
 
ज़िन्दगी एक और जाम हो जाए ।
एक दौर और इम्तेहान का हो जाए ।
तुमने बहुत की है बेवफाई यां हम से ।
अब एक दौर का 
वफ़ा भी तो हो जाए ।
 
अजय सरदेसाई (मेघ)
शनिवार , ५/३/२०२२
०९:४५ PM 
 




Friday 4 March 2022

यादों की दराज़ें


यह लम्हे यह पल गुजरते जा रहे है I

वक़्त हातोंसे फिसलता जा रहा है I

कहते है के बीता वक़्त रुकता नहीं है I

मगर मैंने इसे यादों की दराज़ों में जखड़ रखा है I

इन दराज़ों से कभीं कभीं आवाजें आती है I

कभी सुनहरी सुबह तो कोई श्याम मुझे पुकारती है I

उन यादों में फिर मैं खो जाता हूँ I

बीते पलों को फिर से जी लेता हूँ I

बीते पलों को फिर से जी लेता हूँ ......


- मेघ -

शनिवार ,५//२०२२ ,

१२:१५ PM


इन यादों में जब भी झांकता  हूँ

बीतें वक़्त की तस्वीरें  देखता हूँ I

बीते पलों की दराज़ों में

गुजरे वक़्त का खुमार देखता हूँ I

ख़ूब तदबीर निकाली है मनाने की दिलको 

अब मैं  रोज़ रंगीन नज़ारें देखता हूँ I

मेरे शिकंजे से न कभी छूटे है गुजरे पल I

मैं इन्हे यादों की दराज़ों में कैद रखता हूँ I

अब यादों में ही बनाया है मैंने आशियाना मेरा I

ज़िन्दगी मैं तुझे अब वहीँ से देखता हूँ I

- मेघ -

शनिवार ,५//२०२२ , 

०१:१०  PM


एक शब हल्की सी जुम्बिश मुझे महसूस हुई

मैं ये समझा मिरे शानों को गदगदा रहा है कोई I

रुखों पर हल्की सी नमी मुझे महसूस हुई

यादों का एक कारवाँ गुजर गया था कोई I


शब्  - night

जुम्बिश - movement

मिरे शानों - my shoulders

नमी- wetness

रुखों पर - my cheeks ,गलों पर 

कारवाँ - काफिला ,group



- मेघ -

शनिवार ,५//२०२२ , 

०५:५०   PM


यह वक्त का दरिया है।

जिंदगी के तिनकों से बना है।

भरलो  पैमाने में यादों के कुछ पल।

न जाने क्या किसके नसिब में आता है।



-मेघ-

शनिवार,५/३/२०२२

०६:२६ PM


रफ़्तार वक़्त की थमती नहीं किसीके लिए I

कुछ यादें  तो समेटों मुस्तक़बिल  के लिए I

किसने देखा है आने वाला कल कैसे होगा I

यादों के यहीं पश्मीने गर्माहट देंगे ,काम आएंगे I

इन्हे  जतन करलो ज़िंदगीकी सर्द खिजाओं के लिए I

 

रफ़्तार – speed

थमती – stops

समेटों – gather

मुस्तक़बिल – for future

पश्मीने – warm shawls

जतन - सुरक्षित रखना , save

सर्द – cold

खिजा – autumn , fall season

 

-मेघ-

शनिवार,५/३/२०२२

:२६ PM