प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Monday 6 November 2023

किसी राह में कोई रहबर मिले ये सोचते हैं


जिस रहगुज़र चलते है ये सोचते हैं ।
किस शहर में हो बसर ये सोचते हैं ।।

हर सुबह एक नई राह जानिब ।
आज कौनसा नया सफर ये सोचते हैं ।।

न जाने कैसी ये शौक-ए-मुसाफिरी हैं ।
रोज नए शहर से गुज़रे ये सोचते हैं ।।

चलते रेहना हैं,ये मुसाफिर का नसिब ।
न जाने कब ज़िन्दगी रुक जाए ये सोचते हैं ।।

उम्र हो गयी, काश के हमराह मिले कोई ।
किसी राह में कोई रहबर मिले ये सोचते हैं ।।

मंगलवार,०७/११/२०२३ , १०:५२ AM
अजय सरदेसाई (मेघ)


रहगुज़र = रास्ता, राह , पथ 
बसर = गुजारा
शौक-ए-मुसाफिरी = hobby of a traveller 
जानिब = ओर , direction
हमराह = साथ चलाने वाला
रहबर = राह दिखाने वाला

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