प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Sunday 11 February 2024

मुस्कुरादों तो अच्छा


 

 

मेरी सुख़न का जिक्र न हो तो अच्छा।

इस फ़न का जिक्र न हो तो अच्छा।।१।।


हर ग़ज़ल जो लिखी मैंने वो थी तेरे लिए।

वो किसी और को बयाँ न हो तो अच्छा।।२।।

 

मैं बस तुम्हे सुनाऊ तुम मुझे सुनो दिलसे।

ये बातें बस हमतुम में रहनेदो तो अच्छा।।३।।

 

ये दिल कि लगी न जाने कब बुझेगी।

ये दिल की लगी बुझादो तो अच्छा।।४।।

  

इक आशियाना मैंने सपनों में सजाया।

तुम सपनों को सच बनादो तो अच्छा।।५।।


मैं तुम्हे चाहता हूँ मैं ये मानता हूँ ।

तुम भी इंकार न करो तो अच्छा।।६।।


मेरी नज़रों से जो दुनिया देखी तो क्या

अपनी नज़रों से जो दिखादो तो अच्छा ।।७।।


यूँही बांत तुम मुझसे करती हो तो क्या

गर प्यार भी मुझसे करती हो तो अच्छा ।।८।।


ज़िन्दगी यूँ अकेले गुजर जाए तो क्या

जिन्दगी में तुम मिल जाओ तो अच्छा ।।९।।


तुम्हे देखकर लबोंपे इक गीत आया। 

तुम सुनकर मुस्कुरादों तो अच्छा।। १०।।


अजय सरदेसाई (मेघ)

रविवार, ११ //२०२४ , :३०  PM

 

सुख़न = poetry

फ़न = कला , Art

बयाँ करना =  बताना

आशियाना = बसेरा , घर

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