प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Friday 22 March 2024

कभी-कभी


 

कभी-कभी मन में लगता है, मैं बन जाऊं एक कृष्ण मेघ,

बनके बारिश बरसता रहु ,बरसने का बढ़ता रहे आलेख।

कभी-कभी लगता है बनु एक कवी की कोमल कलम,

जिस कलम से कविताए रिसती रहे,सुन्दर और सक्षम। 

कभी-कभी मन में लगता है, मस्त हवा मैं बन जाऊ,

तेरे महकते बदन को छूकर मैं फिर लौटकर आऊ।

कभी-कभी मन में लगता है, तेरा सपना बन जाऊं,

तेरे रंध्रों से उठे रोमांच से मैं भी रोमांचित हो जाऊ।

कभी-कभी मन में लगता है, चाँदनी बन जाऊं,

मेरेलिए चकोर तरसे अक्सर और उसे मैं मिल जाऊ।  

कोई तृष्णा रहे दिल की और मेरा मन शांत हो,

जिस कैवल्य की चाह एक उम्र से है वो मुझे प्राप्त हो।

 

शुक्रवार, २२//२०२४ , ०५:५५ PM

अजय सरदेसाई (मेघ)


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