प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Saturday 2 March 2024

क्या दास्ताँ सुनाती है


 

वो तस्वीर कागज़ की क्या दास्ताँ सुनाती है।

वो जो दास्ताँ--रंग है क्या वही सुनाती है।। 


वो तिरगी सी जो बसी है उस तस्वीर में।

वो कौन सा दास्ताँ--रंग सुनाती है।।


परतव--ख़ुर पड़ी जब तस्वीर--'इबरत पर।

वो तजल्ली जाने क्या दास्ताँ सुनाती है।।


वो जो दिखता है कभी-कभी वो अस्ल मे होता नहीं।

वो होता है कुछ और तस्वीरें कुछ और सुनाती है।।


तरवीरें और उनमें भरें रंग भी अक्सर बोलते है

सब्र से देखो और ध्यान से सुनो वो जो सुनाती है।।

 

दास्ताँ = कथा , कहानी

दास्ताँ--रंग = कहानी जो रंग कहते है

परतव--ख़ुर = सूर्य की किरण

तस्वीर--'इबरत = छवि जिससे कोई पाठ सीखा जाए ,

तजल्ली = रौशनी

अक्सर = अधिकतर , अमूमन

सब्र = patience

 

अजय सरदेसाई ( मेघ )

शनिवार , //२०२४ , :३० PM

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