प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Monday 25 March 2024

प्राप्ति उस मोक्ष की अब तक न हुई है


दुख की कोई बूंद नहीं है दिल में,

खुशियों का क़ाइल भी नहीं मैं

अंत तो जाना ही है, इसे मैं मानता हूँ,

मौत का डर मगर कभी रखता हूँ

अक्सर मेरे दिल मैं अनगिनत कांटे चुभे हैं,

लेकिन किसी भी चीज़ में कटुता नहीं है।

शायद कभी अगर कोई मेरा दिल तोड़ता है,

लेकिन कोई कड़वाहट मेरे दिल में नहीं है।

जीवन की राहें बड़ी ही कठिन हैं,

लेकिन साथ मेरे कोई हमराह नहीं है।

रात की कालिक शायद उतर भी जाए ,

लेकिन उस दिशा में सूरज नहीं है।

उसका दावा है सबसे के वह यार मेरा है ,

फिर क्यों अब तक मुझे पहचान सका है।

महंगी बिक रही चमेली बाजार में है,

फिर क्यों उसमे  कोई सुगंध नहीं है।

जीवन अपने कदमों में आगे बढ़ता है,

लेकिन दिशा, अब तक स्थिर नहीं हुई है।

एक हरा कवल दिल में कबसे खिला है ,

किसी देवता को अब तक अर्पण किया है।

समाधी शरीर की तो कब की लग चुकी है,

लेकिन प्राप्ति उस मोक्ष की अब तक हुई है।

 

सोमवार , २५/०३/२०२४  ०५:५५ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)


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