ऐ जमील हम सोते जागते ख्वाबों में तुम्हे देखते है।
दिन हो या रात हो बस तेरा ही जमाल देखते है ।।
अपने घर में आईना रखना छोड़ दिया हमने।
अब हम तिरी ऑंखो में अपना अक्स देखते है।।
वस्ल की रात, मौका और दस्तूर भी हैं।
क्यों न हम आज रात मिलकर देखते हैं।।
हम है और तुम हों और है ये खुबसूरत समां।
चालों एक दूसरे की ऑंखों में डूबकर देखते हैं।।
वाकिफ नहीं तुम अभी इन इश्क की राहों से।
क्यों न इन राहों पर साथ चलकर देखते हैं।।
मिरी नज़रों में दिलबर अब तिरे सिवा कुछ भी नहीं।
तिरी नज़रों से ये दुनियां अब ऐ हमसफ़र देखते हैं।।
बुधवार १४/२/२०२४ , ६:३० PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
जमील = खूबसूरत , beautiful
जमाल = खूबसूरती beauty
अक्स = प्रतिबिम्ब , reflection
No comments:
Post a Comment