प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Wednesday, 14 February 2024

ऐ जमील


  जमील हम सोते जागते ख्वाबों में तुम्हे देखते है।

दिन हो या रात हो बस तेरा ही जमाल देखते है ।।


अपने घर में आईना रखना छोड़ दिया हमने।

अब हम तिरी ऑंखो में अपना अक्स देखते है।।


वस्ल की रात, मौका और दस्तूर भी हैं।

क्यों हम आज रात मिलकर देखते हैं।।


हम है और तुम हों और है ये खुबसूरत समां।

चालों एक दूसरे की ऑंखों में डूबकर देखते हैं।।


वाकिफ नहीं तुम अभी इन इश्क की राहों से।

क्यों इन राहों पर साथ चलकर देखते हैं।।


मिरी नज़रों में दिलबर अब तिरे सिवा कुछ भी नहीं।

तिरी नज़रों से ये दुनियां अब हमसफ़र देखते हैं।।

 

बुधवार १४//२०२४ , :३० PM

अजय सरदेसाई (मेघ)


जमील = खूबसूरत , beautiful

जमाल =  खूबसूरती  beauty  

अक्स = प्रतिबिम्ब , reflection

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