मेरी सुख़न का जिक्र
न हो तो अच्छा।
इस
फ़न का जिक्र न हो तो अच्छा।।१।।
हर
ग़ज़ल जो लिखी मैंने वो थी तेरे लिए।
वो किसी और को बयाँ न हो तो अच्छा।।२।।
मैं
बस तुम्हे सुनाऊ तुम मुझे सुनो दिलसे।
ये बातें बस हमतुम में रहनेदो तो अच्छा।।३।।
ये
दिल कि लगी न जाने कब बुझेगी।
ये दिल की लगी बुझादो तो अच्छा।।४।।
इक
आशियाना मैंने सपनों में सजाया।
तुम
सपनों को सच बनादो तो अच्छा।।५।।
मैं
तुम्हे चाहता हूँ मैं ये मानता हूँ ।
तुम
भी इंकार न करो तो अच्छा।।६।।
मेरी
नज़रों से जो दुनिया देखी तो क्या
अपनी
नज़रों से जो दिखादो तो अच्छा ।।७।।
यूँही
बांत तुम मुझसे करती हो तो क्या
गर
प्यार भी मुझसे करती हो तो अच्छा ।।८।।
ज़िन्दगी
यूँ अकेले गुजर जाए तो क्या
जिन्दगी
में तुम मिल जाओ तो अच्छा ।।९।।
तुम्हे
देखकर लबोंपे इक गीत आया।
तुम
सुनकर मुस्कुरादों तो अच्छा।। १०।।
अजय सरदेसाई (मेघ)
रविवार,
११ /२/२०२४ , ७:३० PM
सुख़न
= poetry
फ़न
= कला , Art
बयाँ
करना = बताना
आशियाना
= बसेरा , घर
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