कोई शय जमीं पे मुकम्मल नहीं हैं।
सिवाय इसके जिन्दगी में कोई कमी नहीं है।।1।।
एक बार तो देखलो तुम प्यार से मुझे।
नफ़रत की इस दुनियां में मुझे कमी नहीं है।।२।।
मरने की मेरे पास कई वजहें है मगर ।
जिने कि अब तलक कोई वज़ह नही है।।३।।
फरिश्तों ने भी मुझे ठुकराया है अक्सर ।
अब किसी से भी कोई मुझे आस नहीं है।।४।।
तुम बताओ कि इस जहां से मैं जाऊ कहाँ ।
किसी जहां में मेरे लिए कोई जगह नहीं है।।५।।
रविवार, ११/२/२०२४ , ११:३६ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
शय
= वस्तु , पदार्थ
मुकम्मल
= पूर्ण , सम्पूर्ण
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