प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Sunday 17 December 2023

भुलाता चला गया


 

जिन्दगी तो पहले से ही गुमराह थी मेरी।

फिर तेरे मिलने से ये मुकर्रर भी हो गया।


ज़माने ने कहा के तुमसे 'अल्लुक़ रखें।  

और एक मैं था के राब्ता बढाता चला गया।


ख्वाहिशें तो बहुत थी मुझे ज़िन्दगी से मगर।

ख्वाब तुटते गये और मैं अरमान जलाता गया।।


रास्तें बड़े लम्बे थे और अभी मंज़िल थी बड़ी दूर।

हर मिल का पत्थर जब आया मैं रिश्ते छोड़ता गया।।

 

सवंर जाती अगर ज़िन्दगी तो फिर वो ज़िन्दगी क्या थी।

जो बिगड़ गए ज़िन्दगी के पल वह मैं भुलाता चला गया।।


रविवार १७/१२/२३ , ०४:२२  PM 

अजय सरदेसाई (मेघ )

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