प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Friday 1 December 2023

वक्त अपनी दस्तक देता जा रहा है

वक्त अपनी दस्तक देता जा रहा है उम्र पर।
जवानी अब ज़वाल और बुढ़ापा है उरुज पर ।।
 
वो हुस्न-ओ-जिस्म जिस पर तुम्हे गुरुर था कभी ।
हुस्न कु्म्हला गया है और जिस्म है ख़ुरूज पर  ।।

ज़िन्दगी से चुरालो जितने लम्हे चुरा सको ।
ये लम्हे महगें है और मिलते है ब्याज पर।।

ये कमल जो सूरज सा खिला है बड़ा खूबसूरत है। 
करिश्मा-ए-कुदरत है क्यों नाराज हो सिराज पर ।।

खुशियाँ मिली थी तुम्हे ज़िन्दगी से भरम मत रख।
मुफ्त न थी जानेमन सारी की सारी थी ख़राज पर ।। 


ज़वाल =  उतार, ह्रास , Ebb 
उरुज =  उत्थान , High 
गुरुर  =   अभिमान, अहंकार, घमंड, अकड़
कुम्हला =  झुरना, सूखना, सुखाना , मुरझाना
ख़ुरूज = बगावत , rebellion 
करिश्मा-ए-कुदरत =  wonder of nature 
सिराज = सूरज , Sun 
ख़राज = कर , tax
 
गुरुवार, ०१/१२/२३ , ०१:३७ PM 
अजय सरदेसाई (मेघ )

 

No comments:

Post a Comment