प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Monday 25 December 2023

सिर्फ चांदनी रह जाएंगी



हात में फिर भी मेरे यह बेड़ियाँ रह जाएंगी   

तेरे बाद भी दिल में तेरी यादें रह जाएंगी ।। ।।


मुम्किन ये भी है के मैं एक दिन भुल जाऊंगा तुम्हें

यहाँ फिर भी अपने प्यार कि निशानियाँ रह जाएंगी ।। ।।

  

मै जानता हूं के तुझे मुझसे अब कोई नाराज़गी नहीं    

तिरी तीखीं नजरों की फिर भी तल्खियां तो रह जाएंगी ।। ।।


हम तिरी ऑंखो में जानम इस कदर दूब जाएंगे

के हमारे होने की कोई निशानियाँ रह जाएंगी ।। ।।

  

इश्क में अपने फांसकर मार ही डाला आपने मुझे   

मुर्दा तो तैयार है,जनाजे कि तैयारियॉँ बस रह जाएंगी ।। ।।


मेरी दिल--जानाँ तु यु मुझे बर्बाद कर।

तेरी बद-सलुखी की फिर कहानियाँ रह जाएंगी ।। ।।


आप अगर अब मिलने को ना आए तो हम रुठ जाएंगे 

ये हो के माहताब गुम हो और सिर्फ चांदनी रह जाएंगी ।।   ।।


ज़रा सा तो बहल जाने दे मेरे इस दिल--नादाँ को

ये हो के दिल टुटने कि बस आवाजें ही रह जाएंगी ।। ।।

 



रविवार , दिनांक २४ दिसंबर २०२३ , :५०  PM
अजय सरदेसाई (मेघ)

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