प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Sunday 31 December 2023

ज़िन्दगी

 

तुने अब तक मुझे सिर्फ दर्द--मायुसी ही दि है ज़िन्दगी।

नए साल में कुछ यादगार पल और खुशियां भी ले आना ।।१ ।।


 ज़िन्दगी तु अब जरा मुझसे तमीज से पेश आना

शिकायत नही इल्तेजा है मेरी जरा नजाकत से आना ।।२ ।।


वक्त को कहाँ पता है तु उसे कहाँ ले जा रही है ज़िन्दगी

इस बार मुझको बता उसे कहाँ किस जगह है ले आना ।।३ ।।


ज़िन्दगी तुझे ढुंढता फिर रहा हुं मै तिरा पता है कहाँ।

कहदे मिरे कानों में के परस्तिश के लिए कहाँ है आना।।४ ।।


ज़िन्दगी तु सोचती है के मैं जिन्दा हुं लेकिन ये सच नहीं

बता जिन्दगी के तेरे लिए मेंरी लाश को कहाँ है आना ।।५ ।।

 

परस्तिश = पूजा, आराधना, इबादत.

 

रविवार दिनांक ३१/१२/२३ ,:१८ PM

अजय सरदेसाई (मेघ)


No comments:

Post a Comment