ग़म बुंद-बुंद रिसता रहा आहिस्ता आहिस्ता।
दिल तिल-तिल टूटता रहा आहिस्ता आहिस्ता।।
ख़्वाइशों की जगह टूटे ख़्वाबों ने ली आहिस्ता आहिस्ता।
लम्हा-लम्हा यूँ ही कटता रहा आहिस्ता आहिस्ता।।
रौनक़-ए-गुल मुरझाता रहा आहिस्ता आहिस्ता।
पत्ता-पत्ता झड़ता रहा आहिस्ता आहिस्ता।।
रात-ए-बदर से चाँद सिकुड़ता रहा आहिस्ता आहिस्ता।
शब-ए-तारीक़ सरकता रहा आहिस्ता आहिस्ता।।
दरिचों पे चिलमन पसरता रहा आहिस्ता आहिस्ता।
धीरे-धीरे चेहरे पे नक़ाब चढ़ता रहा आहिस्ता आहिस्ता।।
सब्र-ए-दिल टूटता रहा आहिस्ता आहिस्ता।
दर्द कतरा-कतरा बढ़ता रहा आहिस्ता आहिस्ता।।
उम्मीद का चराग़ ढलता रहा आहिस्ता आहिस्ता।
अँधेरा हौले-हौले बढ़ता रहा आहिस्ता आहिस्ता।।
'मेघ' अश्क बहाता रहा आहिस्ता आहिस्ता।
कतरा-कतरा सागर बनता रहा आहिस्ता आहिस्ता।।
मंगलवार, १६/९/२५ ,७:२८ PM
अजय सरदेसाई -मेघ
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