प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Sunday, 14 September 2025

अंदाज़ मैं रखता नहीं


मतला:
कहते हैं वो कि मैं हर्फ़ों का लिहाज़ मैं रखता नहीं।
ये अदा क्या कम है, कि तल्ख़ियों का अंदाज़ मैं रखता नहीं।।

शेर २:
वो होंगे और जो आदाब-ए-अदबी हैं।
मैं जज़्बातों का क़ाइल हूँ, वो अंदाज़ मैं रखता नहीं।।

शेर ३:
ग़ज़ल न सही, नज़्म ही सही,कोई गिला मैं रखता नहीं।।
जज़्बात छू जाएँ तो काफ़िया-ओ-रदीफ़ के साज़ मैं रखता नहीं।।

शेर ४:
सुख़नवर वो जो हर्फ़ों में घोल दे जज़्बात सारे।।
ग़ालिब-सी हर्फ़-ओ-ज़ुबाँ का मिजाज़ मैं रखता नहीं।।

मक़ता:
मैं ‘मेघ’ हूँ, आसमाँ पर सल्तनत मेरी रही।।
रुख़ हवाओं का है किस जानिब, अंदाज़ मैं रखता नहीं।।

शनिवार, १३/९/२५ , ५:५५ PM
अजय सरदेसाई -मेघ 

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