मतला:
कहते हैं वो कि मैं हर्फ़ों का लिहाज़ मैं रखता नहीं।
ये अदा क्या कम है, कि तल्ख़ियों का अंदाज़ मैं रखता नहीं।।
कहते हैं वो कि मैं हर्फ़ों का लिहाज़ मैं रखता नहीं।
ये अदा क्या कम है, कि तल्ख़ियों का अंदाज़ मैं रखता नहीं।।
शेर २:
वो होंगे और जो आदाब-ए-अदबी हैं।
मैं जज़्बातों का क़ाइल हूँ, वो अंदाज़ मैं रखता नहीं।।
शेर ३:
ग़ज़ल न सही, नज़्म ही सही,कोई गिला मैं रखता नहीं।।
जज़्बात छू जाएँ तो काफ़िया-ओ-रदीफ़ के साज़ मैं रखता नहीं।।
शेर ४:
सुख़नवर वो जो हर्फ़ों में घोल दे जज़्बात सारे।।
ग़ालिब-सी हर्फ़-ओ-ज़ुबाँ का मिजाज़ मैं रखता नहीं।।
मक़ता:
मैं ‘मेघ’ हूँ, आसमाँ पर सल्तनत मेरी रही।।
रुख़ हवाओं का है किस जानिब, अंदाज़ मैं रखता नहीं।।
शनिवार, १३/९/२५ , ५:५५ PM
अजय सरदेसाई -मेघ
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