कोई तुझे देखे तो मैं तंगजर्फ हो जाता हूं।
कोई तुझे चाहे तो मैं तंगजर्फ हो जाता हूं।।
युं तो सब्र बड़ा है मुझमें,आज़माकर देखो मगर।
गरचे कोई बात तेरी हो,तो तंगजर्फ हो जाता हूं।।
बज़्म-ए-मयकदे में गर मय नहीं, तो चल जाता है।
पर तू न हो ए साक़ी,तो तंगज़र्फ हो जाता हूँ।।
पास गर मेरे तुम नहीं,तो कोई बात नहीं मगर।
तू अगर तसव्वुर में भी नहीं,तो तंगज़र्फ हो जाता हूं।।
मक़्ता:
'मेघ',ख़ुदा गर मिरे वजूद को तस्लीम न करे, कोई बात नहीं।
मिरी परस्तिश को जो न क़ुबूले, तो तंगज़र्फ हो जाता हूँ।।
मंगलवार, २९/७/२५ , ८:५४ PM
अजय सरदेसाई -मेघ