मतला:
मेरी बेदिली कोई बुज़दिली नहीं है।
ये रवायत नहीं, बस मिरी मजबूरी है।।
मुझे आता है मोहब्बत को निभाना।
न निभा पाया, ये मिरी मजबूरी है।।
दिल से चाहा था उसे हर एक घड़ी।
अब ये फ़ासला-ए-दिल मिरी मजबूरी है।।
किस तरह आँख में अश्क़ों को छुपाएँ।
ये मुस्कुराहट दिल से नहीं,
मिरी मजबूरी है।।
मक़्ता :
जिसे दिल से कभी अपना कहा था ‘मेघ’।
अब उसी को अजनबी कहूँ, मिरी मजबूरी है।।
रविवार २७/७/२५ .३:२० PM
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