मतला:
तल्ख़ियाँ जो उसकी आँखों में दिखाई हैं।
शायद मिरी मोहब्बत में ही कुछ कमी आई हैं।।
ज़िक्र उसका न किया दिल की ख़लिश कहने को।
वरना लबों पे बहुत सी बातें उभर आई हैं।।
आँधियाँ वक़्त की दिल पर गिरीं इस क़दर।
ख़्वाहिशों की जो चिंगारियाँ थीं, बुझाई हैं।।
उसकी आँखों में नमी देख के ये जाना मैंने।
हमने चाहत की जो तस्वीर थी,
मिटाई हैं।।
मक़्ता:
‘मेघ’ यूँ ही नहीं टूटी ये
तमाम कड़ियाँ।
सालों की ख़ामोशियों की ये क़ीमत पाई हैं।।
अजय सरदेसाई -मेघ
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