मतला
ये पुरानी तस्वीर कितनी सुहानी लगती है।
अब आईना देखूँ तो अपनी ही अक्स बेगानी लगती है।।
वक़्त ने कितने रंग चेहरे से उतार दिए।
हँसते लम्हों की याद भी अब कहानी लगती है।।
कभी दिल में जो ख्वाब थे,वो तस्वीरो में कैद हैं।
मगर हक़ीक़त की राह अब वीरानी लगती है।।
आईनों से मोहब्बत थी हमें बहुत,तकाज़ा उम्र का था।
नज़र मिलाऊँ तो बात वो भी अब बचकानी लगती है।।
मक़ता
‘मेघ’ यादों की किताब खोल
के जब देखता हूँ।
हर पन्ने की स्याही अब एक परेशानी लगती है।।
रविवार , २७/७/२०२५ , १२:२५ PM
अजय सरदेसाई - मेघ
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