प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Sunday, 27 July 2025

ग़ज़ल :ये पुरानी तस्वीर



मतला

ये पुरानी तस्वीर कितनी सुहानी लगती है।

अब आईना देखूँ तो अपनी ही अक्स बेगानी लगती है।।

 

वक़्त ने कितने रंग चेहरे से उतार दिए।

हँसते लम्हों की याद भी अब कहानी लगती है।।

 

कभी दिल में जो ख्वाब थे,वो तस्वीरो में कैद हैं।

मगर हक़ीक़त की राह अब वीरानी लगती है।।

 

आईनों से मोहब्बत थी हमें बहुत,तकाज़ा उम्र का था।

नज़र मिलाऊँ तो बात वो भी अब बचकानी लगती है।।

 

मक़ता

मेघ’ यादों की किताब खोल के जब देखता हूँ।

हर पन्ने की स्याही अब एक परेशानी लगती है।।

 

रविवार , २७/७/२०२५ , १२:२५ PM

अजय सरदेसाई - मेघ

 

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