प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Monday, 21 July 2025

दिल से निकली है...


(बहर: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन)

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छोड़कर ए जान मुझे तू कहाँ निकली है।

मेरी साँसों से सही तू तसव्वुर से कहाँ निकली है।।

 
परिंदों ने घोंसले छोड़कर आसमां पकड़ लिया है।
घोंसलों से मगर आह नहीं, वाह निकली है।।
 
तुझे भुलाने से पहले ही मेरी पहचान चली जाए।
सच कहता हूँ, क़सम से — मेरे दिल से ये ख़्वाहिश निकली है।।
 
लफ़्ज़ों का क्या है, उनसे मिसरे बनते हैं।
मगर मिसरों से जो ये ग़ज़ल बनी है, वो दिल से निकली है।।
 
ज़िंदगी किस घड़ी में क्या हो कौन जानता है।
जिस घड़ी आँखें मिलीं — वल्लाह, वो क्या घड़ी निकली है।।
 
सोमवार ,२१/७/२५ , ११:०० PM
 अजय सरदेसाई- मेघ

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