तेरा मिलना एक उरूज था और बिछुड़ना एक ज़वाल है।
अब किसे तिरी याद मे रखे दिल के पास, ये सवाल है।।
वो जो हँस के दिल में उतर गया, वही ख़्वाब अब मलाल है।
अब मलाल ख़्वाब का करे या अपने दिल का, ये सवाल है।।
ये जिंदगी का सफ़र भी, किसी इम्तिहाँ सा लगता है।
जिंदगी के हर सवाल में तिरा ज़िक्र क्यो है, ये सवाल है।।
कभी ख्वाब थे जो नज़र में,अब वो ख़याल टोकते हैं बार बार।
किन ख्वाबों ख्यालों को तवज्जो पहले दू अब, ये सवाल है।।
‘मेघ’ पूछता है ख़ुदी से,क्या अजब ये मोहब्बत का जमाल है।
उरूज क्या, ज़वाल क्या, निखार किसका ज़्यादा है, ये सवाल है।।
रविवार , २७/७/२०२५ , ११:१० AM
अजय सरदेसाई - मेघ
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