प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Saturday, 26 July 2025

ये सवाल है


 


तेरा मिलना एक उरूज था और बिछुड़ना एक ज़वाल है।

अब किसे तिरी याद मे रखे दिल के पास, ये सवाल है।।

 

वो जो हँस के दिल में उतर गया, वही ख़्वाब अब मलाल है।

अब मलाल ख़्वाब का करे या अपने दिल का, ये सवाल है।।

 

ये जिंदगी का सफ़र भी, किसी इम्तिहाँ सा लगता है।

जिंदगी के हर सवाल में तिरा ज़िक्र क्यो है, ये सवाल है।।

 

कभी ख्वाब थे जो नज़र में,अब वो ख़याल टोकते हैं बार बार।

किन ख्वाबों ख्यालों को तवज्जो पहले दू अब, ये सवाल है।।

 

‘मेघ’ पूछता है ख़ुदी से,क्या अजब ये मोहब्बत का जमाल है।

उरूज क्या, ज़वाल क्या, निखार किसका ज़्यादा है, ये सवाल है।।

 

रविवार , २७/७/२०२५  , ११:१० AM

अजय सरदेसाई - मेघ

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