प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Wednesday, 23 July 2025

ग़ज़ल: चेहरे पर मोहब्बत है


 

इन सिलवटों से शर्माना कैसा, ये तो ने’मत है।

उम्रदराज़ों के तजुर्बे की चुकाई हुई क़ीमत है।।

 

आईना जब भी देखो, अक्स कहता है।

वल्लाह, चेहरे पर छाई हुई क्या जिनत है।।

 

ये धूप, ये छाँव, ये मौसम के नक़्श चेहरे पर।

हर एक लम्हे की तारीख़ की नक़्शियत है।।

 

लबों पे हँसी और आँखों में ठहरा समुंदर।

बयां न हो सके जो, वो अश्कों की अदबीयत है।।

 

जो झुकी हैं पलके, वो सजदे नहीं तो क्या हैं।

ये झुर्रियाँ इबादत की बसी हुई सूरत है।।

 

'मेघ' अब आईना देख सोचता है क्या शख्शियत है।

कि वक्त की मार में भी चेहरे पे मोहब्बत है।।

 

बुधवार - २३/७/२५ , १२:०५ PM

अजय सरदेसाई -मेघ

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