जिस रहगुज़र चलते है ये सोचते हैं ।
किस शहर में हो बसर ये सोचते हैं ।।
किस शहर में हो बसर ये सोचते हैं ।।
हर सुबह एक नई राह जानिब ।
आज कौनसा नया सफर ये सोचते हैं ।।
न जाने कैसी ये शौक-ए-मुसाफिरी हैं ।
रोज नए शहर से गुज़रे ये सोचते हैं ।।
चलते रेहना हैं,ये मुसाफिर का नसिब ।
न जाने कब ज़िन्दगी रुक जाए ये सोचते हैं ।।
उम्र हो गयी, काश के हमराह मिले कोई ।
किसी राह में कोई रहबर मिले ये सोचते हैं ।।
मंगलवार,०७/११/२०२३ , १०:५२ AM
अजय सरदेसाई (मेघ)
रहगुज़र = रास्ता, राह , पथ
बसर = गुजारा
बसर = गुजारा
शौक-ए-मुसाफिरी = hobby of a traveller
जानिब = ओर , direction
हमराह = साथ चलाने वाला
रहबर = राह दिखाने वाला
जानिब = ओर , direction
हमराह = साथ चलाने वाला
रहबर = राह दिखाने वाला
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