चाह कर भी मुझे तुम क्या पाओगे ।
ग़म में मेरे अक्सर, झुलस जाओगे ।।
मैं यह नहीं कहता कि मुहब्बत न करों ।
मगर जो ये मुझसे करोगे, तो पछताओगे ।।
मेरा न कोई घर हैं ना ठिकाना हैं सनम ।
मेरे साथ जो चलोगे, तो तुम खो जाओगे ।।
मैं ये जानता हूँ के तुम्हें मुहब्बत है मुझसे ।
मैं भी इकरार करु तो, क्या निभाह पाओगे ।।
यु जख्मों को अपने न तुम बयान करना ।
अगर पुछा किसीने तो, क्या दिखा पाओगे ।।
ज़िन्दगी तो मुख्तसर हैं ऐ ख़्वाबीदा दिल ।
इस ज़िन्दगी में तुम, क्या-क्या कर पाओगे ।।
ये मोहब्बत आसान नहीं बड़े इम्तेहान लेती है ।
एक आग का दरिया है ये, क्या तैर पाओगे ।।
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झुलस = जल जाना
मुख्तसर = छोटी
ख़्वाबीदा = सपने देखने वाला
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अजय सरदेसाई
शुक्रवार, ३/११/२०२३, ६:२४ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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