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🦚 कौन हुं मैं 🦚
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मैं कौन हूं ये मैं जानता न था ।
अब जान गया के तेरा खयाल हु मैं ।।
तुम वो राज हो जो मुझपर खुला ही नहीं ।
एक गहरा अंधेरा है जिसका आगाज़ हु मैं।।
तेरी तारीफ सुनकर मैं आया हूं ।
किसी ने सुनाया ही नहीं वो शेर हुं मैं ।।
ज़िक्र जिसका हो रहा है उसे होश नहीं।
उसने जो पी रखी है वो शराब हुं मैं ।।
तु जो इतरा रही है,क्या वजह है ।
तु क्या जानती है, कौन हुं मैं ।।
वो जो दरिया था जो यहीं से गुजरा।
वो मुझी मे मिला, समंदर हुं मैं ।।
वो जो वक्त तेरा परेशानी मे गुजरा ।
गौर कर उस गुजरे वक्त का सुकुन हुं मैं।।
वो जो आसमान में अचानक अंधेरा छा गया।
उस गहरे आसमान की रंग-ओ-रौनक हुं मैं ।।
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शनिवार २५/११/२३
४:५४ PM
अजय सरदेसाई (मेघ )
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