बिना जन्म के ही अरथी उठी बेटियों की ।
फिर चाहे कोई लाख पछताकर क्या करें ।।
फिर चाहे कोई लाख पछताकर क्या करें ।।
वो सुन्दर कली कमसिन थी जो मुर्झा गयी ।
किसीने पानी से सिंचा नही , क्या करें ।।
बेटी थी हमारी, शादी करवा के की बिदाई ।
बेटी हमारी ,अमानत किसी और की, क्या करें ।।
बड़ी चुलबुली थी ,हसती थी , हसाती थी , अपनी थी ।
अब सिर्फ एक याद है ,अब वो किसी और की है, क्या करें ।।
उसकी आवाज नहीं थी , खुशियों की रागिनी थी जब वो बोलती थी ।
अब महीनो बाद फोन आता है , मेरे दिल की धड़कन थी,क्या करें ।।
आज भी आंगन में उसकी खिलखिलाहट मुझे सुनाई देती है ।
जानता हु वो किसी और आंगन में चहचहाती है,क्या करें ।।
ये जानता हूं मैं के वो भी खुश है उस नए आंगन में ।
फिर भी दिल मानता नहीं,बाप का दिल है , क्या करें ।।
शनिवार,२५/११/२३, २:१२ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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