अब वो ताल्लुक न वो राब्ता रहा ।
जब से तु मुझ पर शर्मिंदा रहा ।।
दरमियाँ एक दराज सा रहा ।
दोनों में एक राज सा रहा ।।
टुटे रिश्तों का बोझ सा रहा।
दोस्तों का कुछ काम न रहा ।।
वक्त बेतकल्लुफ़ गुजरता रहा ।
मैं मैं न रहा और तू तू न रहा ।।
न वो रौशनी रही न वो नजारा रहा ।
न मौसम-ए-गुल रहा न वो दयार रहा ।।
मंगलवार,२१/११/२३ ,११:३२ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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