प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Thursday, 24 July 2025

ग़ज़ल - जाया नहीं करते

 


मतला:

जज़्बात हर कहीं ज़ाहिर करके जाया नहीं करते।

हुस्न बेवफ़ा है इसपर वफ़ाएं जाया नहीं करते।।

 

ख़ामोश रहके दिल की सदा को सुनना बेहतर है।

हर बात ज़बाँ से  कहके फ़साने जाया नहीं करते।।

 

हमने भी कई बार कहा है बहुत कुछ लोगों से लेकिन।

दिल के जख्मों को दिखाकर हम जाया नहीं करते।।

 

तन्हाई में जो आँसू गिरे हैं रूह की गहराई में।

वो राज़-ए-दिल किसी से मिलाके जाया नहीं करते।।

 

उल्फ़त के रास्ते में ख़ता कोई भी हो जाए अगर।

इज़्ज़त के सौदे हर बार तौलकर जाया नहीं करते।।

 

मक़ता

'मेघ' की ख़ामोशी भी एक कहानी बयां करती है।

कुछ राज दिल के ज़ाहिर करके जाया नहीं करते।।

 

गुरुवार , २४/७/२५ , ४:४० PM

अजय सरदेसाई - मेघ


Wednesday, 23 July 2025

मी शरण तुला आली


चांदण्यात चिंब भिजून, मिलनाची रात्र आली,

बाहुपाशात तुझ्या सजणा, मी गलित गात्र झाली।

 

ओठांचा स्पर्श मुलायम, अधरांस झाला जेव्हा,

ज्वाळांच्या उठल्या लाटा, एक विज कडाडून गेली।

 

कानांत तुझं गुणगुणणं, थेट हृदयास भिडलं,

शब्दार्थ लागताच, मला गोड लाज आली।

 

विकल्प कोणता उरला होता माझ्याकडे रे,

ती गोड मागणी अनामीक, रंध्रारंध्रांने केली।

 

श्वासा-श्वासातून उसळली, अग्नीची उत्क्रांती,

मी विसरून गेली मजला... मी शरण तुला आली।

 

बुधवार, २३/७/२५, ६:५४ PM
  अजय सरदेसाई – ‘मेघ’

आले तुझ्या स्मृतीने डोळ्यांत आज पाणी

 



हृदयीच्या भावना या गुंफू कशा शब्दांत,

हृदयीची स्पंदने विरली पुन्हा हृदयात.

दुःख हृदयीचं गाते मुक गाणी,

आले तुझ्या स्मृतीने डोळ्यांत आज पाणी.

 

हे चांदणे कुणाचं पसरलं नभात,

जणू पुंजके आठवणींचे पसरले मनात.

ओघळलं डोळ्यात एका चांदण्याचं पाणी,

आले तुझ्या स्मृतीने डोळ्यांत आज पाणी.

 

हुळुवार भावना या जणू पाकळ्या फुलांच्या,

ठेवल्या सर्व जपून पुस्तकात आठवणींच्या.

सांगू कुणास मी ही हळवी जुनी गार्‍हाणी,

आले तुझ्या स्मृतीने डोळ्यांत आज पाणी.

 

वाटे मनास माझ्या मी विसरून तुज गेलो,

भेटीच्या त्या क्षणांना मागे सोडून आलो.

भैरवीत भिजवून का हे मन गाई विरह गाणी,

आले तुझ्या स्मृतीने डोळ्यांत आज पाणी.

 

बुधवार  - २३/७/२५ , ३:१९ PM

अजय सरदेसाई -मेघ


कवियत्री शांता शेळके यांच्या याच नावाच्या गीतावरून प्रेरित 

ग़ज़ल: चेहरे पर मोहब्बत है


 

इन सिलवटों से शर्माना कैसा, ये तो ने’मत है।

उम्रदराज़ों के तजुर्बे की चुकाई हुई क़ीमत है।।

 

आईना जब भी देखो, अक्स कहता है।

वल्लाह, चेहरे पर छाई हुई क्या जिनत है।।

 

ये धूप, ये छाँव, ये मौसम के नक़्श चेहरे पर।

हर एक लम्हे की तारीख़ की नक़्शियत है।।

 

लबों पे हँसी और आँखों में ठहरा समुंदर।

बयां न हो सके जो, वो अश्कों की अदबीयत है।।

 

जो झुकी हैं पलके, वो सजदे नहीं तो क्या हैं।

ये झुर्रियाँ इबादत की बसी हुई सूरत है।।

 

'मेघ' अब आईना देख सोचता है क्या शख्शियत है।

कि वक्त की मार में भी चेहरे पे मोहब्बत है।।

 

बुधवार - २३/७/२५ , १२:०५ PM

अजय सरदेसाई -मेघ

ग़ज़ल: मुकम्मल नहीं हुई

 

ब्रह:मफ़ा'ईलुन मफ़ा'ईलुन मफ़ा'ईलुन मफ़ा'ईलुन

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नाकामी मोहब्बत में मेरी अभी मुकम्मल नहीं हुई,

शायद इसीलिए ग़ज़ल भी मेरी मुकम्मल नहीं हुई।

 

दिल तो आया है कई बार हुस्न पर मेरा।

मगर इश्क़ में बेबसी अब तक मुकम्मल नहीं हुई।।

 

उस चाँद से तो रवानी बढ़ने लगी है अब।

मगर चाँदनी से पहचान अभी मुकम्मल नहीं हुई।।

 

वो शगुफ़्ता जो लबों पर बेशुमार लुटाई गई।

क्यों आँखों की गहराइयों से अब तक मुकम्मल नहीं हुई।।

 

हुस्न और जिस्म तो फ़ानी हैं, कोई उस हसीना को समझाए।

रूह से रूह की मोहब्बत ज़रूरी है ,जो अब तक मुकम्मल नहीं हुई।।

 

'मेघतिरि दास्ताँ है अधूरी सी अब तलक।

इश्क की इम्तिहानी है ,जो अब तक मुकम्मल नहीं हुई।।

 

 

बुधवार -२३/७/२५ , ११:२० PM

अजय सरदेसाई -मेघ

Monday, 21 July 2025

दिल से निकली है...


(बहर: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन)

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छोड़कर ए जान मुझे तू कहाँ निकली है।

मेरी साँसों से सही तू तसव्वुर से कहाँ निकली है।।

 
परिंदों ने घोंसले छोड़कर आसमां पकड़ लिया है।
घोंसलों से मगर आह नहीं, वाह निकली है।।
 
तुझे भुलाने से पहले ही मेरी पहचान चली जाए।
सच कहता हूँ, क़सम से — मेरे दिल से ये ख़्वाहिश निकली है।।
 
लफ़्ज़ों का क्या है, उनसे मिसरे बनते हैं।
मगर मिसरों से जो ये ग़ज़ल बनी है, वो दिल से निकली है।।
 
ज़िंदगी किस घड़ी में क्या हो कौन जानता है।
जिस घड़ी आँखें मिलीं — वल्लाह, वो क्या घड़ी निकली है।।
 
सोमवार ,२१/७/२५ , ११:०० PM
 अजय सरदेसाई- मेघ

Sunday, 20 July 2025

मुझे तुम याद आए....


 

जब जब बहार आई,और सावन ने ली अंगड़ाई,

मुझे तुम याद आए.....

कोयल कहीं जो चहकी, और हवा गीत गुनगुनाए,

मुझे तुम याद आए...

 

याद है मुझे अब भी बचपन के वो तराने,

वो तितलीयों के पिछे हम दौड़ते थे दिवाने,

जब जब आसमाँ में रंगों के बिखरे साए,

मुझे तुम याद आए.....

 

बचपन के वो खिलौने जो कभी न भुल पाए,

यादों की दराजों से,वो मुझे बहुत बुलाए,

बचपन की वो सहेली,जो न अब नजर आए,

मुझे तुम याद आए....

 

रविवार,२०/७/२५, १२:५६ PM

 अजय सरदेसाई - मेघ

मेरे लिखे अशआर


 

कुछ नए कुछ पुराने यादोंके काफिले सजा रखें है।

मैंने इस महफिल में सितारे सजा रखें है।।

चराग़ जो जले है यहाँ वो दिलों के है।

हर लौ के लिए पतंग तैयार रखें है ।।

 

शनिवार, १९/७/२५, ७:४५ PM

अजय सरदेसाई - मेघ


 

इस महफ़िल में हम नहीं तो क्या, मेरे लिखे अशआर तो हैं,

हर मिसरे में कुछ रौशनी, कुछ गहरे इज़हार तो हैं।

इन्हें पढ़िए दिल की गहराइयों से,न कि महज़ जुबां से,

महफ़िल में हम न सही, अक्स हमारा इन अशआरों में तो है ।।

 

शनिवार, १९/७/२५ , ८:१६ PM

अजय सरदेसाई -मेघ

Monday, 14 July 2025

दुरदेशीचा पक्षी "मी"



दुरदेशीचा पक्षी मी,

दुरुन खूप आलो आहे.

क्षणभर इथे घरटे माझे,

लवकरच प्रस्थान आहे.

आलो कुठुन इथे लक्षात नाही,

जाणार कुठे,ना हे माहीत आहे.

इथे मर्त्य सर्व,फक्त अस्तित्व उरते,

अगणिक रंग त्याचे,एकेक उलगडत आहे.

उन,पाऊस,वारा भोगते ते शरिर,

"मी" कोण? ज्याला यांचा स्पर्श आहे.

दुःख,विलास,आनंद अनुभवते ते मन,

तो "मी" कोण जो चिदानंद आहे.

हा अहंकार भाव मिथ्या,नव्हे सत्य,

तो "मी" कोण जो याचा सर्वसाक्षी आहे.

 

सोमवार, १४//२०२५ , :४० PM

अजय सरदेसाई - मेघ